Prachin Bharatiya Abhilekh (प्राचीन भारतीय अभिलेख)
₹110.00
Author | Dr. Dinesh Chandra |
Publisher | Uttar Pradesh Hindi Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition, 2008 |
ISBN | 978-81-89989-13-2 |
Pages | 162 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 1 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPHS0020 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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प्राचीन भारतीय अभिलेख (Prachin Bharatiya Abhilekh) भारतीय परम्परा में वैज्ञानिक आधार पर इतिहास लेखन काफी समय बाद ही प्रारम्भ हो सका है। इतिहास के साथ एक त्रासदी यह भी रही है कि अनेक अवसरों पर परम्परा और किवदंतियों को इतिहास के रूप में प्रस्तुत करने के प्रयास होते रहे हैं। ऐसे में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त इतिहास की पुष्टि में जितना महत्त्वपूर्ण योगदान अभिलेखों का रहा है, उतना किसी अन्य माध्यम का नहीं रहा। भारतीय इतिहास का यह सौभाग्य है कि विभिन्न कालखंडों के अभिलेख बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। स्वाभाविक है कि इन कालखंडों का इतिहास-लेखन भी अत्यंत प्रामाणिक बन सका है। दुर्भाग्य से जिन कालखंडों-आर्य सभ्यता और रामायण काल आदि के अभिलेख लगभग उपलब्ध नहीं है, उनके इतिहास को वैज्ञानिक आधार पर लिपिबद्ध करना आज के अत्यंत विकसित समय में भी पूरी तरह सम्भव नहीं हो सका है।
इन स्थितियों में विद्वान लेखक डॉ. दिनेश चन्द्रा ने गुप्तोत्तरकालीन विभिन्न अभिलेखों को संकलित कर अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित किया है। प्राचीन अभिलेखों को अक्षरशः लिपिबद्ध करना, और उनसे उचित निष्कर्ष निकालना आसान कार्य नहीं है। यह गुरुतर कार्य जिस तरह से विद्वान लेखक ने इस पुस्तक ‘प्राचीन भारतीय अभिलेख’ में सम्पन्न किया है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं। अभिलेखों के संदर्भ में विस्तृत जानकारी के साथ-साथ जिस तरह विभिन्न सम्बंधित ग्रन्थों की भी उल्लेखनीय सामग्री का सहयोग लिया गया है, उससे भी विद्वान लेखक के व्यापक अध्ययन को अभिव्यक्ति मिलती है।
यह पुस्तक एक संदर्भ ग्रन्थ की तरह है और इस तरह ऐतिहासिक तथ्यों से प्रत्यक्ष साक्षात्कार भी कराती है। ऐसे में सम्बंधित पाठकों को विभिन्न कालखंडों के इतिहास के सम्बन्ध में स्वयं भी निर्णय करने और अपने विचारों को सप्रमाण शब्द देने में जरूरी मदद मिल सकेगी। आशा है कि यह पुस्तक इतिहास और पुरातत्व के विद्यार्थियों / शोधार्थियों के बीच अत्यंत उपयोगी प्रमाणित होगी, साथ ही भारतीय संस्कृति और परम्परा के वैज्ञानिक अध्ययन में विश्वास रखने वाले पाठक भी इसका लाभ उठायेंगे, ऐसी आशा है।
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