Prachin Bharatiya Shiksha Ke Vittiya Prabandhan Ki Upadeyata (प्राचीन भारतीय शिक्षा के वित्तीय प्रबन्धन की उपादेयता)
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Author | Prof. Manikachand Shukla |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition, 2007 |
ISBN | 81-87415-74-6 |
Pages | 200 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 6 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0123 |
Other | Bharatiya Vidya Sansthan |
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प्राचीन भारतीय शिक्षा के वित्तीय प्रबन्धन की उपादेयता (Prachin Bharatiya Shiksha Ke Vittiya Prabandhan Ki Upadeyata) शिक्षा के सुगठित और व्यवस्थित परिचालन के लिए समुचित वित्तीय प्रबन्धन आवश्यक है। वित्त ही वह शक्तिशाली कारक है, जिसके द्वारा शिक्षा के समूचे अंग परिपोषित होते हैं। विद्यालयभवन, अध्यापक, पुस्तकालय, छात्रावास, क्रीड़ा-सामग्री, उपवेशन, शैक्षिक उपकरण आदि की व्यवस्था अर्थ पर ही निर्भर करती है। भारतीय मनीषियों ने अर्थ की प्रयोजनशीलता को दृष्टि में रखते हुए शिक्षा के वित्त को इस प्रकार नियोजित किया था कि उसकी आपूर्ति सहज ढंग से हो जाती थी।
शासक एवं समाज के लोग शिक्षा की वित्तीय आवश्यकता को स्वतः पूरा कर देते थे। शिक्षा के वित्त का प्रबन्धन मौलिक उपादानों के साथ जोड़ दिया गया था। इसके लिए अलग से प्रयास नहीं करना पड़ता था। विकासशील भारतवर्ष के लिए यह आवश्यक है कि वर्तमान शिक्षा की वित्तीय व्यवस्था को मौलिक श्रोतों के साथ जोड़ दें। समाज के लोगों में पुनः वित्तीय सहयोग की चेतना जागृत करें, जिससे हमारी शिक्षा निर्बाध गति से चरमोत्कर्ष की ओर अग्रसर हो सके।
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