Prashna Gyan (प्रश्न ज्ञान आर्यासप्तति:)
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Author | Dr. Shukdev Chaturvedi |
Publisher | Ranjan Publication |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2022 |
ISBN | 81-88230-12-X |
Pages | 128 |
Cover | Paper Back |
Size | 13 x 1 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RP0060 |
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प्रश्न ज्ञान आर्यासप्तति: (Prashna Gyan) ज्योतिष शास्त्र के अद्वितीय व्याख्याकार भट्टोत्पल की एकमात्र उपलब्ध यह लघुकाय रचना ‘प्रश्नज्ञान’ ही है। भट्टोत्पल ने बृहज्जातक, बृहत्संहिता, षट्पंचाशिका, प्रश्नविद्या, ब्रह्मगुप्त के खण्डखाद्य, वराह के यात्रा ग्रन्थ व लघुजातक पर विद्वत्तापूर्ण टीकाएं लिखी हैं। अन्य टीकाओं के विषय में कहना सुकर नहीं है, लेकिन उक्त टीकाओं में से वराह के बृहज्जातक व बृहत्संहिता की टीकाएं, षट्पंचाशिका, प्रश्नविद्या की टीकाएं छप चुकी हैं। वराह की योगयात्रा सम्प्रति उपलब्ध नहीं है। सम्भव है उसकी उपलब्धि से उसकी टीका भी प्रकट हो जाए। ब्रह्मगुप्त के खण्डखाद्य की टीका बृहत्संहिता की व्याख्या में संकेतित है :
खण्डखाद्यकरणे अस्मदीय वचनम्। (बृ.संहिता टीका)
इससे प्रतीत होता है कि बृहत्संहिता से पूर्व ही खण्डखाद्य की टीका लिखी जा चुकी थी। यह टीका दक्षिण भारत में भोजपत्र पर उपलब्ध है तथा यह कश्मीर से प्राप्त हुई थी।
उत्पल के मौलिक ग्रन्थ भट्टोत्पल की प्रश्नज्ञान नामक प्रस्तुत रचना उनकी निजी है, कोई टीका ग्रन्थ नहीं है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं हुई है। भट्टोत्पल द्वारा बृहत्संहिता की टीका में एक स्थान पर लिखी हुई आर्या से पहले ‘अस्मदीयवचन’ से प्रतीत होता है कि गणित स्कन्ध पर इनका कोई स्वतंत्र ग्रन्थ होगा। लेकिन वह आर्या खण्डखाद्य की टीका में भी लिखी हो सकती है। अतः विश्वासपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता है।
अल्बेरूनी ने उल्लेख किया है कि भट्टोत्पल के दो करणग्रन्थ थे। राहुन्नाकरण व करणपात। पहली बात तो यह है कि एक ही व्यक्ति ने दो करण ग्रन्थ क्यों लिखे होंगे। बहुत सम्भव है कि दोनों एक दूसरे के पूरक हों। तीसरे ग्रन्थ की सूचना भी अल्बेरूनी ने ही दी है। उसका नाम ‘श्रूधव’ कहा है। इसके विषय परिचय से यह शकुन या संहिता से सम्बन्धित ग्रन्थ प्रतीत होता है। लेकिन तीनों ग्रन्थों के नाम कुछ विचित्र लगते हैं। एकमात्र उपलब्ध व निर्विवाद पुस्तक ‘प्रश्नज्ञान’ ही है। इनके अतिरिक्त बृहन्मानस नामक ग्रन्थ पर भी इन्होंने टीका की थी। अपनी वास्तु विद्या की सूचना भी इन्होंने स्वयं बृहत्संहिता की टीका में दी है।
भट्टोत्पल का महत्व : उत्पलाचार्य की टीकाओं को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि भट्टोत्पल बहुत ही स्वाध्यायी, ग्रन्थसंग्रह में सदा तत्पर तथा परिश्रमी व्यक्तित्व के स्वामी थे। टीकाओं में उद्धृत अनेक अप्राप्य ग्रन्थों के उद्धरणों के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है। आर्ष संहिताओं व मानवीय ग्रन्थकारों के मन्तव्यों को ऐसी सुदृढ़ आधारभित्ति प्रदान की थी कि वराहमिहिर का कृतित्व आज भी हिलाए नहीं हिलता है। इन की टीकाओं के आधार पर ज्योतिष शास्त्र के क्रमिक विकास को समझने में विद्वानों को बड़ी सहायता मिली है। कालिदास के महाकाव्यों के लिए जिस तरह मल्लिनाथ वरदान साबित हुए थे, वैसे ही वराह की रचनाओं के लिए भट्टोत्पल बड़े सिद्धहस्त टीकाकार हुए हैं।
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