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Pratik Shastra (प्रतिक शास्त्र)

150.00

Author Paripurna Nand Varma
Publisher Uttar Pradesh Hindi Sansthan
Language Hindi
Edition 3rd edition, 2006
ISBN -
Pages 448
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code UPHS0018
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Description

प्रतिक शास्त्र (Pratik Shastra) मानवजीवन में प्रतीकों का अपना महत्त्व है। यदि यह कहा जाय कि विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े प्रतीकों को समझे बिना मनुष्य की अब तक की यात्रा को समझा ही नहीं जा सकता, तो अतिशयोक्ति न होगी। धर्म तथा संस्कृति ही नहीं, साहित्य और कला की ऊँचाइयों भी प्रतीकों को समझे बिना नहीं समझी जा सकतीं। विशेषकर दर्शन तथा तंत्र से जुड़े धार्मिक / सांस्कृतिक प्रतीकों को काफी विस्तार में जाकर ही, समझा जा सकता है। सच तो यह है कि प्रतीक शब्द की व्याख्या आसान नहीं है और उनको पूरी तरह स्पष्ट करना तो और भी कठिन है। प्रतीकों के नित नये अर्थ आ रहे हैं और ऐसे में उन्हें पूर्ण अभिव्यक्ति देना एक दुष्कर कार्य है। भारतीय संस्कृति के सन्दर्भ में यह कार्य कितना कठिन होगा, इसका एक अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि सैकड़ों वर्षों के दौरान विकसित इस समूची परम्परा को लगभग पूरी तरह प्रतीकों पर ही आधारित माना जाता है, अर्थात् इसका कोई भी क्षेत्र / शब्द व्यापक अर्थों में जो बात कह रहा है, उसकी प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति के दौरान अर्थ के अनन्त सोपान दृष्टिगत होते हैं।

इस दुष्कर कार्य को, विशेषकर भारतीय संस्कृति के प्रतीकों को सरल भाषा में समझाने का अत्यन्त उपयोगी कार्य, सुप्रसिद्ध विद्वान परिपूर्णानन्द वर्मा जी ने अपनी इस पुस्तक ‘प्रतीकशास्त्र’ में किया है। यह पुस्तक प्रथम बार लगभग चार दशक पूर्व प्रकाशित हुई थी और अब उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, हिन्दी समिति प्रभाग की प्रकाशन योजना के अन्तर्गत, इस पुस्तक का तीसरा संस्करण प्रकाशित कर रहा है। इन वर्षों में इसकी अबाध लोकप्रियता ही इसकी विषयवस्तु की स्तरीयता का प्रमाण है।

सम्पूर्ण पुस्तक 60 अध्यायों में विभक्त है और इनके अधिकतर विषय किसी भी जिज्ञासु की आये दिन की जिज्ञासा को पूरी तरह शान्त करते हैं। उदाहरण के लिए देवता, मूर्ति, चिह्न, भाषा, विचार, धर्म, तन्त्र, मन्त्र, बिन्दु, अंक, शिवत्व, मन, बुद्धि आदि के प्रतीकात्मक अर्थ विद्वान लेखक की असाधारण प्रतिभा को पूरी तरह मुखर करने में सक्षम हैं। इसी तरह सूर्य, वृक्ष, अग्नि, चन्द्रमा, त्रिशूल, स्वस्तिक, सर्प, वृषभ, कमल, कौडी, घण्टा तथा स्वप्न आदि चीजों के प्रतीकात्मक अर्थ जब यह बताते हैं कि उनकी भूमिका मानवीय चिंतन में असीमित है, तो भारतीय मनीषा की ऊँचाइयों के प्रति आदर भाव और बढ़ जाता है। इनकी विशद व्याख्या के दौरान विद्वान लेखक जगह-जगह पर अन्य देशों में प्राप्त उसी तरह के प्रतीकों और वहाँ प्रचलित उनके अर्थों की व्याख्या भी करते चलते हैं। विभिन्न संस्कृतियों में एक ही प्रतीक के मिन्न अर्थ देखना-पढ़ना आह्लादित करता है और सम्पूर्ण विमर्श अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बन जाता है। अन्त में समकालीन समाज तथा राजनीति से जुड़े प्रतीकों को पुस्तक में स्थान देकर इसे सार्थक सम्पूर्णता दी गयी है।

ऐसे में पिछले चार दशकों के दौरान इस पुस्तक को मिली अबाध लोकप्रियता स्वाभाविक है और उत्साहवर्धक भी। आशा है, भारतीय संस्कृति और मनीषा को गहरे खंगालने के इच्छुक सुधी पाठकों के साथ-साथ सम्बन्धित क्षेत्र के शोधछात्रों के बीच पुस्तक के इस तृतीय संस्करण का भी पर्याप्त समादर होगा।

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