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Pratyaksha Khandam (न्यायसिद्धान्तमुक्तावली प्रत्यक्षखण्डम्)

Original price was: ₹80.00.Current price is: ₹70.00.

Author Dr. Ganesh Datt Shastri Shukla
Publisher Sharda Sanskrit Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition -
ISBN -
Pages 142
Cover Paper Back
Size 14 x 1 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SSS0049
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Description

प्रत्यक्षखण्डम् (Pratyaksha Khandam) भारतीय मान्यता है कि धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की उपलब्धि करना ही मानवका कर्तव्य है। इनमें से चतुर्थ पुरुषार्थ परम प्राप्तव्य है अन्य तीन उसके साधनभूत होने के कारण गौण है। मोक्ष या मुक्ति को ‘निःश्रेयस्’ नाम से भी व्यक्त किया जाता है। शरीर बन्धन में पड़ कर जीव नाना कर्म करता है, उन कमर्मों का फल भोगने के लिये उसे पुनः शरीर धारण करना पड़ता है। इस प्रकार यह जन्म-कर्म का बन्धन कभी समाप्त नहीं होता। इस त्रिविधतापमय भवबन्धन से मुक्त होने के उपाय सभी शास्त्र अपनी-अपनी दृष्टि से निर्धारित करते हैं। मागों में पार्थक्य दृष्टिगोचर होता है किन्तु सब का गन्तव्य लक्ष्य एक ही है-भवबन्धन से मुक्ति। न्यायशास्त्र का प्रयोजन भी मोक्ष ही है। न्यायशास्त्र के प्रवर्तक गौतम मुनि ने इस निःश्रेयस् रूप प्रयोजन की सिद्धि के लिये प्रमाण-प्रमेय आदि सोलह पदाथों के ज्ञान को कारण माना है। यथा-

प्रमाण-प्रमेय-संशय-प्रयोजन-दृष्टान्त-सिद्धान्त-अवयव-तर्क-निर्णय-वाद-जल्प-वितण्डा-हेत्वाभास-च्छल-जाति-निग्रहस्थानानां तत्व-ज्ञानान्निःश्रेयसाधिगमः। न्याय दर्शन १-१-१

गौतम मुनि का तात्पर्य है कि उक्त सोलह पदार्थों के सम्यग् ज्ञान से आत्मज्ञान और आत्मज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। गौतम ने द्वितीय सूत्र में इस निःश्रेयसाधिगम के क्रम को भी निर्धारित किया है।

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