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Rahasyamay Siddha Bhumi Tatha Surya Vigyan (रहस्यमय सिद्धभूमि तथा सूर्यविज्ञान)

135.00

Author Pt. Gopinath Kaviraj
Publisher Vishwavidyalaya Prakashan
Language Hindi
Edition 5th Edition - 2022
ISBN 978-93-5146-019-0
Pages 144
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code VVP0007
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Description

रहस्यमय सिद्धभूमि तथा सूर्यविज्ञान (Rahasyamay Siddha Bhumi Tatha Surya Vigyan) सूर्यविज्ञान सम्बन्धित इस ग्रन्थ के विषय में सुविज्ञ पाठकगण से यह कहना है कि इस ग्रन्थ को पढ़कर कोई भी त्रिकाल में सूर्यविज्ञान में निष्णात नहीं हो सकता। इसे पढ़कर योगिराजाधिराज विशुद्धानन्द परमहंसदेव के समान सूर्यविज्ञान जनित सृष्टि चमत्कार करने में भी कोई सफल नहीं हो सकता, क्योंकि यह विज्ञान दीर्घकालीन अध्यवसाय, नियमानुवर्तिता तथा गुरुकृपा से ही प्राप्त हो सकता है। यह प्रायोगिक विज्ञान है। मात्र सैद्धान्तिक नहीं है। जबकि यह ग्रन्थ इसके सैद्धान्तिक पक्ष पर मात्र क्षीण प्रकाश-प्रक्षेपण है।

तब इसे लिखने का तथा संयोजित करने का क्या प्रयोजन ? जब यह ग्रन्थ पड़कर अथवा कण्ठस्थ करके भी सूर्यविज्ञान आयत्त नहीं हो सकता, तब इसे भाषाबद्ध करके पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना तथा पाठकों द्वारा इसे पढ़कर केवल इसके सम्बन्ध में आलोचना-प्रत्यालोचना करना व्यर्थ श्रम मात्र नहीं तो और क्या है ? आपात् दृष्टि से ऐसा प्रतीत होना सम्भव है। परन्तु वास्तविकता कुछ और है। हो सकता है कि इसे पढ़कर किसी भाग्यशाली के मन-मस्तिष्क में इस विज्ञान को प्राप्त करने की प्रकृत इच्छा का उदय हो, उसके अन्दर इसे प्राप्त करने की उद्दाम लालसा उत्पन्न हो। ऐसी स्थिति में नियम यह है कि जिसकी जिस विषय के प्रति यथार्थ तथा सात्विक इच्छा होती है, जो इस प्रकार की सइच्छा के आकर्षण तथा अतिरेक के कारण अपने भौतिक (अहं) अस्तित्व के विलोप के साथ-साथ सर्वतोभावेन सर्वेच्छामयी विज्ञाननिधि महाशक्ति के अंक में जा पड़ता है, उसकी वह इच्छा पूर्ण होकर रहती है। अतः इस ग्रन्थ के संयोजन का मात्र उद्देश्य है ऐसी प्रेरणा देना तथा इच्छा का उद्बोधन कराना, जिससे इस लोकोत्तर विज्ञान के प्रति रुचि का जागरण हो सके। प्रत्येक शास्त्र का यही आशय है। उस उस शास्त्र का अवगाहन करके व्यक्ति उसमें वर्णित तत्त्व के प्रति जाग्रत् तथा आकांक्षित होकर तदनुरूप कर्म में व्यापृत हो जाता है। यही इस ग्रन्थ का प्रयोजन है।

इस ग्रन्थ में जो कुछ अंकित है उसमें मेरी कल्पना का लेशमात्र नहीं है। गुरुमुख से सुने गये, प्रामाणिक ग्रन्थों में वर्णित किये गये तथा प्रत्यक्ष द्रष्टागण द्वारा देखकर पुस्तकाकृति में प्रकाशित किये गये तथ्यों पर यह ग्रन्थ आधारित है। इसमें योगिराजाधिराज विशुद्धानन्ददेव के शिष्य श्री अक्षयकुमार दत्त गुप्त, महामहोपाध्याय डॉ० पं० गोपीनाथ कविराज महोदय के वचुनों का मुख्यतः समावेश है। इनमें प्रत्येक की उपलब्धि को उनके नाम से मुद्रित किया गया है, जो मूल से हिन्दी भाषा में मेरे द्वारा अनूदित है। कहीं-कहीं जहाँ इन महापुरुषों द्वारा वर्णित अंश सूत्र रूप में तथा क्लिष्ट अथवा संकेत रूप में है, उनकी स्वमति के अनुसार व्याख्या भी प्रस्तुत करने का साहस कर रहा हूँ। पुस्तक के प्रारम्भ में ज्ञानगंज सिद्धभूमि का भी यथासाध्य वर्णन अंकित है। साथ ही कुछ साधकों की कृतियाँ भी संयोजित हैं।

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