Rasa Ratnakar (रसरत्नाकर)
₹850.00
Author | - |
Publisher | Khemraj Sri Krishna Das Prakashan, Bombay |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2020 |
ISBN | - |
Pages | 912 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | KH0046 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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रसरत्नाकर (Rasa Ratnakar) यह तो आपको भलीभाँति विदित होगा कि, यह संसार अनेक प्रकारकी विद्याओंका पूर्ण भाण्डागार है, परन्तु आयुर्वेदविद्या ईश्वरने महा अद्भुत और तत्काल चमत्कार दिखानेवाली बनाई है, ऐसा कौन अज्ञानी मूर्ख होगा जिसको इस विद्यासे काम न पड़ता होगा, विचार करके देखा जाय तो कैसाही ज्ञानी, ध्यानी, राजा, महाराजा, योगी, वियोगी क्यों न हो, परन्तु इस संसारमें रहकर, दो चार बार प्रत्येक पुरुषको इस वैद्यक विद्याके जाननेवाले वैद्योंसे अवश्यही काम पड़ता है, क्योंकि यह शरीर आतङ्क भवन है, और इसका मूल पृथ्वी, पावक, आकाश, पानी, और पवन है, इनहीं पाँचों तत्त्वोंसे यह शरीर रचा गयाहै, इन तत्त्वोंको वैद्य लोग भली भाँति जानते हैं, ऐसे वैद्योंका सदैव तन मन धनसे आदर सत्कार करना चाहिये, क्योंकि वही इस देहके उपकारकर्त्ता और कष्टहर्त्ता हैं, जिनकी कृपादृष्टिसे यह शरीर सदा स्वस्थ रहता है, फिर उनकी समान प्राणदान देनेवाला और कौन है ? इस कारण आयुर्वेदविद्या सर्वोत्तम है ।।
इस विद्याके अनन्त भेद हैं, परन्तु इसमें चार प्रधान हैं, कोष, निदान, निघण्टु और चिकित्सा, उस चिकित्सामें भी चार भेद हैं, दैवी, आसुरी, मानुषी और सिद्धि ।।
रसेन कथितो वैद्यो मानुषो मूलकादिभिः ॥
अधमः शखदाहाभ्यां सिद्धवैद्यस्तु मांत्रिकः ॥ १॥
अर्थ – रसोंके आश्रयसे जो वैद्य लोग चिकित्सा करते हैं, वह वैद्य हैं। जो काष्ठादिक औषधियोंसे उपाय करते हैं, वह मनुष्य चिकित्सक हैं। जो शत्रसे अथवा दाहसे प्रयत्न करते हैं, वह अधम भिषक् हैं। और जो यंत्र मंत्रसे उपचार करते हैं, वह सिद्ध अगदङ्कार कहलाते हैं। इन सब प्रमाणोंसे यह रसायनविद्या (रस बनानेकी विधि) सर्वोत्तम और तत्काल फल देने वाली है, इसीलिये इसका नाम दैवी चिकित्सा रक्खा है ।।
रसविद्या परा विद्या त्रैलोक्येऽपि च दुर्लभा ॥
भुक्तिमुक्तिकरी यस्मात् तस्माज्ज्ञेया गुणान्वितैः ॥ १ ॥
अर्थ – रसविद्या अत्यन्त श्रेष्ठ है, और तीनों लोकोंमें भी दुर्लभ है, तथा मुक्ति (भोग) और मुक्ति (मोक्ष) १) पदार्थ की देने वाली है, इस कारण इस सर्व गुण युक्त रसविद्या को अवश्य सीखना चाहिये, क्योंकि आयुर्वेदमें रसायनविद्याही मुख्य है ।।
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