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Ratnavali Natika (रत्नावली नाटिका)

127.00

Author Tarinish Jha
Publisher Ramnarayanlal Vijaykumar
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 2020
ISBN -
Pages 264
Cover Paper Back
Size 11 x 1 x 17 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0086
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Description

रत्नावली नाटिका (Ratnavali Natika) इस नाटिका का मूल गुणाढ्य की बृहत्कथा जान पड़ती है; क्योंकि बृहत्कथा के रूपान्तर सोमवैव के कथासरित्सागर से नाटिका का कथानक मिलता- जुलता है। कथासरित्सागर में उदयन की कथा इस प्रकार वर्णित है-

उदयन चन्द्रवंशीय अर्जुन, के वंशजं शतानीक के पुत्र कौशाम्बी-पति सहक्षा- नीक से उत्पन्न हुधा । जब वह माता मृगावती के गर्भ में था तब रानी ने शापवश दधिर में स्नान करने की इच्छा राजा से दोहद के रूप में प्रकट की। राजा ने लाक्षारस के तालाब में उसके स्नान का प्रबंध कर दिया। रानी नहा रही थी कि एक गिद्ध उसे मांस-पिण्ड समझकर उठा ले गया और उदय पर्वत पर जमदग्नि मुनि के धाश्रम के पास रखकर कहीं चला गया । मुनि के श्राश्रम में रानी ने उदयन को जन्म दिया। बालक का वहीं पालन-पोषण होने लगा। बड़ा होने पर एक दिन उदयन ने एक व्याध के हाथ में दुर्वेशाग्रस्त एक सुन्दर सर्प को देखा । दयावश उदयन ने व्याध को अपना सोने का कड़ा देकर सर्प को छुड़ा दिया । वह सर्प बासुकि का बड़ा माई वसुनेमि था, जो शापबश इस दशा को प्राप्त हुआ था। उसने प्रसन्न होकर उदयन को एक वीणा दी और साथ ही अनेक मंत्र भी दिये ।

व्याध वह कड़ा वैचने के लिए कौशाम्बी पहुँचा। उस कड़े पर राजा का नाम अंकित देखकर लोगों ने उसे पकड़कर राजसमा में उपस्थित किया। उसने कड़े की प्राप्ति की घटना बतायी। राजा सह्नानीक अपने स्त्री-पुत्र को प्राप्त करने के लिए सेना लेकर चल पड़ा। जमदग्नि के प्राश्रम में दोनों मिले । राजधानी में लाकर राजकुमार को युवराज बना दिया भौः उसके परामर्श के लिए अपने मंत्रियों के पुत्र यौगन्धरायण, रुमण्वान् तथा वसन्तक को नियुक्त कर दिया। कुछ दिनों के बाद राजा पुत्र को राज्य-भार सौंपकर तपम्या के लिए हिमालय में चला गया ।

उदयन को शिकार का ध्यसन हो गया। वह अपने मन्त्रियों पर राज्य का भार डालकर स्वयं वसुनेमि की दी हुई घोषवती नामक बीणा को बजाने तथा उससे जंगली हाथियों को वश में करने की क्रिया में तल्लीन हो गया। उज्ज दिनी का राजा चण्डमहासेन अपनी पुत्री वासवदत्ता से उदयन का विवाह कराना चाहता था । वासवदत्ता भी उदयन के रूप और गुणों की प्रशंसा सुनकर उस पर मुग्ध थी। किन्तु इस कार्य में बाधक दोनों राज्यों को पुरानी शत्रुता थी । इसलिए उज्जयिनोपति ने युक्ति से कार्य सिद्ध करना चाहा। उसने एक यन्त्र-गज बनवाया और उसमें कुछ सैनिकों को बैठाकर विन्ध्यारण्य में छोड़ दिया । मृगयाप्रेमी उदयन उसको वास्तविक गज समझकर वीणावादन द्वारा वशीभूत करने का उपक्रम करने लगा। किन्तु वह यन्त्र-गज राजा को बहुत दूर ले गया । जब उसमें बैठ हुए सैनिकों ने उदयन को अपने साथियों से बहुत दूर भाया हुआ देखा तब वे अन्दर से निकैलकर उदयन को कैद करके उज्ज यिनी ले गए। वहाँ चण्डमहासेन ने उदयन के साय स्नेहपूर्ण व्यवहार किया और अग्नी पुत्री वासवदत्ता को गान्धवं शिक्षा देने के लिए उसे सौंप दिया । शीघ्र ही दोनों प्रेम-सूत्र में बंध गए।

इधर यौगन्धरायण और रुमण्वान् आदि को जब पता चला कि उनका राजा इस प्रकार गिरफ्तार होकर उज्जयिनी पहुँच गया तब उन्होंने मी युक्ति से ही काम लेना सोचा। यौगन्धरायण वसन्तक को साथ लेकर उज्जयिनी पहुँचा । बहीं उसने ब्रह्मराक्षस से सीखे हुए मन्त्र के प्रभाव से वसन्तक को विकलांग बना दिया और स्वयं भी पागल बन गया। इसी रूप में दोनों अन्तः- पुर में पहुँच गये । वहीं यौगन्धरायण ने उदयन को अपना परिचय देकर परामर्श किया और बसन्तक उदयन तथा वासवदत्ता के मनोविनोदार्थ वहीं रह गया।

जब वासवदत्ता और उदयन में प्रगाढ़ प्रेम हो गया और वासवदत्ता उदयन के साथ भाग जाने के लिए तैयार हो गई तब यौगन्धरायण ने उदयन के पास जाकर वहाँ से माग निकलने की सारी योजना बता दी। तब उदयन रात्रि में बासवदत्ता, उसकी प्रिय सहचरी काञ्चनमाला और वसन्तक के साथ भद्रवती नामक हथिनी पर सवार होकर चुपके से भाग निकला। जब चण्डमहासेन के पुत्र पालक को यह घटना मालूम हुई तब उसने नलगिरि नामक हाथी पर चढ़ कर उदयन का पीछा किया। किन्तु नलगिरि ने अपनी प्रिया मद्रवती को पह- चान कर उस पर प्रहार नहीं किया। तब चण्डमहासेन का दूसरा पुत्र गोपालक अपने भाई को समझा-बुझाकर वापिस लौटा ले आया । पश्चात् चण्डमहासेन की आज्ञा से गोपालक ने कौशाम्बी जाकर उदयन के साथ वासवदत्ता का विवाह विधिपूर्वक करा दिया ।

एक बार गोपालक ने बन्धुमती नामक किसी राजकुमारी को मंजुलिका नाम से छिपाकर वासवदत्ता के पास कर दिया। राजा उदयन उस परम सुन्दरी मंजुलिका को देखकर उस पर अनुरक्त हो गया। फिर बसन्तक की सहायता से एक दिन उसने उद्यान के लताकुञ्ज में मंजुलिका के साथ गान्धर्व विवाह कर लिया । जब यह घटना रानी वासवदत्ता को मालूम हुई तो उसने अत्यन्त क्रुद्ध होकर मंजुलिका तथा वसन्तक को कारागार में डाल दिया। इस पर राजा वासवदत्ता के मायके से आयी हुई वृद्धा संन्यासिनी सांकृत्यायनी के पास पहुँचा। उसके कहने पर वासवदत्ता ने न केवल वसन्तक और बन्धुमती को बन्धन से मुक्त किया, बल्कि स्वयं बन्धुमती को राजा के हाथ में सौंप दिया।

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