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Ravan Samhita (रावण संहिता)

616.00

Author Dr. Surkant Jha
Publisher Chaukhamba Sanskrit Series Office
Language Sanskrit & Hindi
Edition 5th edition, 725
ISBN 978-81-7080-331-7
Pages 1190
Cover Hard Cover
Size 14 x 6 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0037
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Description

रावण संहिता (Ravan Samhita) प्रस्तुत ग्रन्थ रावणसंहिता के प्रवर्तक लंकेश्वर दशानन रावण के प्रसङ्ग में देवताओं से भगवान् श्री विष्णु का यह कहना कि वे अभी उसे युद्ध में परास्त नहीं कर सकते, रावण को प्राप्त दिव्य शक्तियों की ओर ही संकेत करता है। यह अजेयता प्रजापति ब्रह्मा से प्राप्त वर के कारण ही थी। इसे प्राप्त करने के लिए रावण ने घोर तपस्या की थी। परन्तु प्राकृतिक कुछ विलक्षणता का परिणाम ही सही मनुष्यों और वानरों की उपेक्षा का फल पराजय के रूप में उसके सामने आया। लेकिन यह क्या कम महत्त्वपूर्ण है कि लंकेश को पराजित करने के लिए निराकार को साकार रूप लेना पड़ा। उनके युद्ध की चर्चा करते समय किसी ने सच ही कहा है-वैसा कोई युद्ध न कभी हुआ और न कभी होगा।

रावण ने अपने अभियान को पूरा करने के लिए शस्त्र और शास्त्र दोनों साधनों को अपनाया। वह तंत्रशास्त्र का परम ज्ञाता था, उसने औषध ज्ञान को स्वयं जांचा-परखा और फिर प्रयोग किया था, वह एक अच्छा दैवज्ञ भी था। इस ग्रन्थ में उसके इन्हीं विविध रूपों पर प्राप्त सामग्रियों की सहायता से प्रकाश डाला गया है। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि ‘रावण संहिता’ नाम का कोई भी ग्रंथ मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। किसी अंश में सही हो सकता है, परन्तु सम्पूर्णता से अलभ्य भी नहीं कहा जा सकता है।

पौराणिक और ज्यौतिषीय गणना के आधार पर रावण की मृत्यु को लगभग नौ लाख वर्ष हो चुके हैं और इतने लंबे समय तक किसी ग्रंथ का मूल रूप में रह पाना संभव नहीं है। अर्थात् समय-समय पर इसमें काफी कुछ जुड़ा ही है। वैसे मैंने भी प्रस्तुत ग्रंथ में उसकी उपलब्ध मौलिकता को बनाए रखते हुए ही कुछ ऐसा प्रयास किया है कि इसमें कुछ इस प्रकार की जानकारी और उपयोगी अलभ्य सामग्री जोड़ी जाए जिससे इस ग्रन्थ की मूल विषय सामग्री की जटिलता को कम कर सके तथा उसे अधिक महत्त्वशाली और उपयोगी भी बनाने में सहायक हो।

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