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Roop Chandrika (रूपचन्द्रिका)

144.00

Author Dr. Keshav Kishore Kashyap
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit
Edition 1st edition, 2021
ISBN 978-93-81189-83-2
Pages 920
Cover Paper Back
Size 11x 4 x 13 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0045
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Description

रूपचन्द्रिका (Roop Chandrika) किसी भी संस्कृति की रीढ़ उसकी भाषा होती है और किसी ‘भी भाषा का मूलाधार उसका व्याकरण होता है। व्याकरण जितना ही समृद्ध होता है, वह ‘भाषा उतनी ही परिष्कृत एवं परिमार्जित होती है; इसीलिये कहा गया है- ‘पठ पुत्र व्याकरणम्’। व्याकरण-ज्ञान के विना भाषा-ज्ञान सम्भव ही नहीं होता और भाषा वही समृद्ध होती है, जिसका व्याकरण सर्वाङ्ग सम्पूर्ण होता है। यही कारण है कि एकमात्र संस्कृत भाषा ही विश्व की सर्वाधिक समृद्ध एवं परिमार्जित भाषा है।

संस्कृत व्याकरण के शब्द पूर्णरूपेण परिमार्जित होते हैं, उसमें एक-एक अक्षरों एवं मात्राओं का अपना अलग महत्त्व होता है। अक्षरों अथवा मात्राओं का किञ्चित् व्यतिक्रम भी शब्द के अर्थ का अनर्थ कर देता है। यतः शब्दों के प्रकृति-प्रत्यय का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किये बिना उनके शुद्ध स्वरूप का ज्ञान नहीं हो सकता; अतः प्रकृति-प्रत्यय एवं परिमार्जित स्वरूप-ज्ञान-हेतु समस्त शुद्ध शब्दों के आगार-स्वरूप प्रकृत ‘रूपचन्द्रिका’ के अतिरिक्त अन्य किसी ग्रन्थ की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

वर्तमान में रूपचन्द्रिका के अनेकानेक संस्करण उपलब्ध होते हैं, लेकिन वे समस्त संस्करण एक-दूसरे की अनुकृति-मात्र हैं; उनमें मात्र प्रकाशक-नाम में ही भिन्नता दृष्टिगत होती है, अन्य कुछ भी नहीं। रूपचन्द्रिका के इन असीमित संस्करणों से यह संस्करण अपने इस वैशिष्ट्य के कारण अलग है कि इसमें संस्कृत शब्दों एवं धातु से बनने वाले तिङन्त, णिजन्त, यडन्त आदि स्वरूपों के साथ-साथ प्राकृत शब्दों के भी तत्तत् विभक्तियों में बनने वाले स्वरूपों का अंकन किया गया है। इस प्रकार संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत शब्दों का भी परिगणन करने वाला यह सर्वथा नूतन एवं अनुपम ग्रन्थ है।

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