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Sankshipt Garud Puran (संक्षिप्त गरुडपुराण)

225.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Hindi
Edition 41st edition
ISBN -
Pages 624
Cover Hard Cover
Size 19 x 3 x 27 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0136
Other Code - 1189

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Description

संक्षिप्त गरुडपुराण (Sankshipt Garud Puran) अठारह महापुराणों में ‘गरुडमहापुराण’ का अपना एक विशेष महत्त्व है। इसके अधिष्ठातृदेव भगवान् विष्णु हैं, अतः यह वैष्णव पुराण है। इसके माहात्यमें कहा गया है-‘यथा सुराणां प्रवरो जनार्दनो यथायुधानां प्रवरः सुदर्शनम्। तथा पुराणेषु च गारुडं च मुख्यं तदाहुर्हरितत्त्वदर्शने। ‘जैसे देवोंमें जनार्दन श्रेष्ठ हैं और आयुधोंमें सुदर्शनचक्र श्रेष्ठ है, वैसे ही पुराणोंमें यह गरुडपुराण हरिके तत्त्वनिरूपणमें मुख्य कहा गया है। जिस मनुष्यके हाथमें यह गरुडमहापुराण विद्यमान है, उसके हाथमें नीतियोंका कोश है। जो मनुष्य इस पुराणका पाठ करता है अथवा इसको सुनता है, वह भोग और मोक्ष-दोनोंको प्राप्त कर लेता है।

यह पुराण मुख्यरूपसे पूर्वखण्ड (आचारकाण्ड), उत्तरखण्ड (धर्मकाण्ड-प्रेतकल्प) और ब्रह्मकाण्ड-तीन खण्डोंमें विभक्त है। इसके पूर्वखण्ड (आचारकाण्ड) में सृष्टिकी उत्पत्ति, ध्रुवचरित्र, द्वादश आदित्योंकी कथाएँ, सूर्य, चन्द्रादि ग्रहोंके मन्त्र, उपासनाविधि, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचारकी महिमा, यज्ञ, दान, तप, तीर्थसेवन तथा सत्कर्मानुष्ठानसे अनेक लौकिक और पारलौकिक फलोंका वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें व्याकरण, छन्द, स्वर, ज्योतिष, आयुर्वेद, रत्नसार, नीतिसार आदि विविध उपयोगी विषयोंका यथास्थान समावेश किया गया है। इसके उत्तरखण्डमें धर्मकाण्ड-प्रेतकल्पका विवेचन विशेष महत्त्वपूर्ण है। इसमें मरणासन्न व्यक्तिके कल्याणके लिये विविध दानोंका निरूपण किया गया है। मृत्युके बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, श्राद्ध, सपिण्डीकरण, कर्मविपाक तथा पापोंके प्रायश्चित्तके विधान आदिका विस्तृत वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें पुरुषार्थचतुष्टय-धर्म, अर्थ, काम और मोक्षके साधनोंके साथ आत्मज्ञानका सुन्दर प्रतिपादन है।

इस पुराणके स्वाध्यायसे मनुष्यको शास्त्र-मर्यादाके अनुसार जीवनयापनकी शिक्षा मिलती है। इसके अतिरिक्त पुत्र-पौत्रादि पारिवारिक जनोंकी पारमार्थिक आवश्यकता और उनके कर्तव्यबोधका भी इसमें विस्तृत ज्ञान कराया गया है। विभिन्न दृष्टियोंसे यह पुराण जिज्ञासुओंके लिये अत्यधिक उपादेय, ज्ञानवर्धक तथा वास्तविक अभ्युदय और आत्मकल्याणका निदर्शक है। जन-सामान्यमें एक भ्रान्त धारणा है कि गरुडमहापुराण मृत्युके उपरान्त केवल मृतजीवके कल्याणके लिये सुना जाता है, जो सर्वथा गलत है। यह पुराण अन्य पुराणोंकी भाँति नित्य पठन-पाठन और मननका विषय है। इसका स्वाध्याय अनन्त पुण्यकी प्राप्तिके साथ भक्ति- ज्ञानकी वृद्धिमें अनुपम सहायक है।

‘कल्याण’-वर्ष ७४ सन् २०००में विशेषाङ्कके रूपमें प्रकाशित इस पुराणके विषय-वस्तुकी उपयोगिताको ध्यानमें रखते हुए इसे पुराणरूपमें अपने पाठकोंके समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। आशा है, ‘गीताप्रेस ‘से प्रकाशित अन्य पुराणोंकी भाँति यह ‘गरुडमहापुराण’ भी श्रद्धालु पाठकोंके लौकिक और पारलौकिक अभ्युदयमें सहायक बनेगा।

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