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Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 17 (संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-सतरह आयुर्वेद का इतिहास खण्ड)

340.00

Author Acharya Baldev Upadhyaya
Publisher Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 1st edition, 2006
ISBN -
Pages 672
Cover Hard Cover
Size 23 x 3 x 15 (l x w x h)
Weight
Item Code UPSS0016
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Description

संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-सतरह आयुर्वेद का इतिहास खण्ड (Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 17) आज के विश्व में सभी देशों के लोग आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति से परिचित हो चुके हैं। इस चिकित्सा पद्धति के सभी आधार ग्रन्थ संस्कृत वाङ्मय में निबद्ध हैं। अतएव आयुर्वेद के क्षेत्र में अध्ययन तथा शोध अनुसन्धान के लिये संस्कृत भाषा की आधारभूत भूमिका आवश्यक ही नहीं कुछ स्थितियों में अपरिहार्य प्रतीत होती है। यूरोप तथा एशियाई देशों के अलावा आस्ट्रेलिया तथा सुदूर मैक्सिको, कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के अनेक छात्र भारतीय प्राच्य विद्या केन्द्रों में अन्यान्य विषयों के अन्तर्गत आयुर्वेद और वनौषधि के पाण्डु-लिपियों का भी अन्वेषण करने लगे हैं। आयुर्वेद की अविच्छिन्न परम्परा और विपुल साहित्य से सन्दर्भित संस्कृत वाङ्मय का समग्र इतिहास विद्वन्मनीषी आचार्य रमानाथ द्विवेदी तथा प्रो. रविदत्त त्रिपाठी के कुशल नेतृत्व में सम्पादित हुआ है।

आचार्य द्विवेदी ने ‘अनादि आयुर्वेद का प्रादुर्भाव’ के अन्तर्गत कहा है कि “आयुर्वेद को कुछ लोग ऋग्वेद से तो अधिकांश अथर्ववेद के उपवेद के रूप में विकसित मानते हैं।” साथ ही आचार्य जी ने उन परम्परा का भी उल्लेख किया है, जो आयुर्वेद को ऋग्वेद का उपवेद मानती आई है। ऐतिहासिक दृष्टि से आयुर्वेद की चरक, सुश्रुत तथा काश्यप संहिताओं की शास्त्रीय मान्यता अवश्य ही उस अविच्छिन्न धारा को रेखांकित करती है, जो भृगु-अङ्गिरस तथा अधर्व-अङ्गिरस के रूप में अथर्ववेद से जुड़ी है।

वस्तुतः किसी शास्त्र को उपवेद की संज्ञा से जोड़ने की परम्परा में उस शास्त्र के महत्त्व का प्रतिपादन ही अभीष्ट होता है। जिस प्रकार आयुर्वेद की सृष्टि ब्रह्मा, इन्द्र, अत्रि तथा भारद्वाज आदि के क्रम से चरक और सुश्रुत आदि संहिताओं में सन्निविष्ट दिखाई देती है, उसी प्रकार नाट्यवेद की सृष्टि भी ब्रह्मा से ही मानी गई है।

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