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Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 11 (संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-ग्यारह तंत्रागम खण्ड)

650.00

Author Acharya Baldev Upadhyaya
Publisher Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2nd edition, 2019
ISBN -
Pages 651
Cover Hard Cover
Size 23 x 3 x 15 (l x w x h)
Weight
Item Code UPSS0011
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Description

संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-ग्यारह तंत्रागम खण्ड (Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 11) भारतीय दार्शनिक परम्परा में अध्यात्म-साधना की दृष्टि से तन्त्रागम का महत्वपूर्ण स्थान है। वस्तुतः भारतीय अध्यात्म साधना के बहिरंग और अंतरंग दो पक्ष प्रसिद्ध हैं। उन दोनों पक्षों के प्रतिपादक शास्त्र और अधिकारी साधक अलग-अलग तरह के होते हैं। उनमें बहिरंग साधना के अधिकारी संसार के मानवमात्र हैं तथा इसके प्रतिपादक शास्त्र को निगम अर्थात् वेद कहते हैं। नाना पुराण, स्मृति-ग्रन्थ, धर्मशास्त्र, रामायण एवं महाभारत उस निगम के अर्थ का ही विस्तार करते हैं।

अध्यात्म-साधना के अन्तरंग पक्ष के प्रतिपादक शास्त्र आगम और तन्त्र नाम से विख्यात हैं। ये दोनों ही शास्त्र प्रयोग पर आधारित है, अतः इनका एक साथ तन्त्रागम शब्द से भी व्यवहार होता है। इस साधना के अधिकारी सीमित होते हैं जो गुरु के निर्देश में ही साधना करने पर सफल हो सकते हैं। अतः तन्त्रागम शास्त्र को अध्यात्म-साधना का विज्ञान भी कह सकते हैं जो बिल्कुल विज्ञान की भाँति प्रयोग पर आधारित है। चूंकि इसके साधक रहस्यपूर्ण, गुप्त और सीमित होते हैं, अतः इसके शास्त्र भी प्रयोग में, गुरु मुख में, रहस्यपूर्ण, गुप्त और परिमित हैं। यद्यपि तन्त्र शब्द सुनते ही तन्त्र-मन्त्र-भूत-प्रेत-डाकिनी- शाकिनी-पिशाचनी आदि रहस्यपूर्ण शब्द, रहस्यलोक और रहस्यमयी साधना स्मृति पटल पर अंकित होती हैं, तथापि तन्त्र शब्द का शास्त्र आदि व्यापक अर्थों में भी प्रयोग होता है। इस संबंध में यह श्लोक प्रसिद्ध है-

तनोति विपुलान् अर्थान् तन्त्रमन्त्रसमन्वितान् । त्राणं च कुरुते यस्मात् तन्त्रमित्यभिधीयते ।।

अर्थात् जो शास्त्र अर्थ का विस्तार करे और साधकों की रक्षा करे, उसे तन्त्रशास्त्र कहते हैं। तन्त्रागम शास्त्रों में भारतीय दार्शनिक चिन्तन-पक्ष के साथ प्रयोग-पक्ष का विस्तार है। हाँ, उनमें कुछ प्रयोग वेद-बाह्य अवश्य है, किन्तु अधिकांश भाग वेद-ग्राड्य है। अतः हम कह सकते हैं कि इनके अभाव में भारतीय सांस्कृतिक चिन्तन अधूरा रहेगा।

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