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Saryuparin Brahman Parichay Vanshavali (सरयूपारीण ब्राह्मण परिचय वंशावली)

50.00

Author Dr. Sharda Pathak
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 2014
ISBN 978-93-81189-09-2
Pages 66
Cover Paper Back
Size 14 x 1 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0010
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Description

सरयूपारीण ब्राह्मण परिचय वंशावली (Saryuparin Brahman Parichay Vanshavali) इस क्षेत्र के अन्तर्गत ब्राह्मणों का जो पर्व बसा हुआ है उसको ‘सरवरिया’ या सरयूपारीण ब्राह्मण कहते हैं। इस ब्राह्मण वर्ग में उपाध्याय, ओझा, चतुर्वेदी, त्रिपाठी, द्विवेदी, पाठक, पाण्डेय, मिश्र और शुक्ल ब्राह्मण हैं। उनको व्यवहार में उपाध्या, ओझा, चौबे, तिवारी, दुबे, पाठक, पांड़े, मिसिर और सुकुल भी कहते हैं। यह ब्राह्मण वर्ग स्वतन्त्र है। यह ब्राह्मण वर्ग यहाँ का मूल निवासी है। इसके पूर्वज कान्यकुब्ज आदि अन्य ब्राह्मण नहीं थे। वे ब्राह्मण सरवार में जिन गाँवों में बसे हुए हैं इनको आस्पद (स्थान) कहते हैं। आप कौन आस्पद हैं? ऐसा पूछने पर वे ब्राह्मण उस स्थान के साथ अपने ब्राह्मण वंश का नाम जोड़ कर परिचय देते हैं। जैसे मामखोर के शुक्ल, पयासी के मिश्र आदि।

प्रत्येक ब्राह्मण किसी एक ऋषि की सन्तान परम्परा में आता है। वह ऋषि गोत्रकार ऋषि होता है। उस ऋषि का नाम ही ब्राह्मण का गोत्र होता है। जैसे, मामखोर के शुक्ल गर्ग गोत्र, पयासी के मिश्र वत्स गोत्र आदि। गोत्र के साथ ही उस गोत्र का प्रवर होता है। प्रवर किसी गोत्र का तीन और किसी गोत्र का पाँच होता है। इससे गोत्र की पीढ़ियों का ज्ञान होता है। गोत्र की जानकारी रखना इसलिए आवश्यक होता है कि प्रत्येक शुभ और अशुभ कार्य में संकल्प वाक्य में इसको शामिल करके पढ़ा जाता है। जैसे गर्ग गोत्रोत्पन्नो अमुक नाम आदि।

वर्तमान काल की औद्योगिक क्रान्ति, बहुराष्ट्रों का बाजारवाद तथा पूँजीवाद के बढ़ते प्रभाव ने धर्मबोध और मानवीय मूल्यों को धूमिल कर दिया है। बेरोजगारी और निर्धनता से ग्रस्त समाज में जीवन चुनौती बनरह गया है तथा भोगवाद की प्रवृत्ति समस्त मूल्यों एवं सदाचारों को ध्वस्त करने की ओर अग्रसर है। मूल्यहीन शिक्षा का भी इसमें बड़ा योगदान है। इन सभी विसंगतियों के बीच ब्राह्मण को अपने कर्तव्यों का स्मरण कर समाज के हितार्थ आगे आना है। हम ‘पुरोहित’ अर्थात् मानव-कल्याण के लिए आगे बढ़ कर काम करने वाले बने और सतत जागरूक होकर राष्ट्र की रक्षा करें, जैसा कि वैदिक ऋषि का आदेश है- ‘वयं राष्ट्र जागृयाम पुरोहिताः।’

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