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Saur Aagam Tantra (सौर-आगम-तन्त्र)

188.00

Author Prof. Shitla Prasad Pandey
Publisher Sampurnananad Sanskrit Vishwavidyalay
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition
ISBN 978-93-87890-08-4
Pages 195
Cover Paper Back
Size 14 x 1 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SSV0036
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Description

सौर आगम तन्त्र (Saur Aagam Tantra) भारतीय संस्कृति की चिन्तनधारा ने आज समस्त संसार को आकृष्ट किया है तथा विज्ञान के अद्यतन अनुसन्धानों ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय ऋषियों द्वारा प्रवर्तित निदर्शित ज्ञान-सरिणी ही वर्तमान अभिशप्त दाहक अपसंस्कृति से बचने के लिए एकमात्र अभेद्य कवच है। इस अभेद्य कवच का निदर्शन निगमागम शास्त्र में निदर्शित है, विशेष रूप से तन्त्रागम विद्या में। धर्मागमशास्त्र का अध्येता होने के कारण विद्यार्थी जीवन से ही मुझे आगमिक साहित्य-सम्पदा पर कार्य करने की रुचि रही, विशेष रूप से उन आगमों के ऊपर जिन पर अभी तक स्वल्प कार्य हुए हैं। ऐसे आगमों में सौर आगम-तन्त्र का परिगणन हो सकता है। अन्य आगमों पर अभी तक जो शोधकार्य हुए हैं, उनकी तुलना में इस आगम-तन्त्र पर कोई शोध हुआ ही नहीं। यहाँ तक कि इस आगम के विपुल साहित्य-सम्पदा का बड़ा अंश अभी तक प्रकाश में भी नहीं आया है। इसीलिए मैं आगम शोध कार्य में प्रवृत्त हुआ, जो आज सामने है।

आज से सौ साल पूर्व श्री आर.जी. भण्डारकर ने स्वलिखित पुस्तक ‘वैष्णविज्म, शैविज्म एण्ड अदर माइनर रिलीजियस सिस्टम्स’ (वैष्णव, शैव तथा अन्य धार्मिक मत) में तान्त्रिक संस्कृति का प्राथमिक परिचय देने का एक स्तुत्य प्रयत्न किया था। प्रस्तुत ग्रन्थ में वैष्णव, शैव तथा शाक्तधारा का कुछ विस्तार से तथा गाणपत्य, स्कान्द, सौर मतों का अत्यन्त संक्षिप्त विवरण दिया है। प्रो. व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा सम्पादित ‘संस्कृत वाङ्मय का बृहद् इतिहास’, तन्त्रागमखण्ड में उपर्युक्त आगमों का नामोल्लेख तक नहीं हुआ है। इसके पूर्व भारतीय तन्त्रशास्त्र नामक एक ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ, उस ग्रन्थ की भी स्थिति यही है। यह अवश्य है कि तन्त्रागमीय धर्म-दर्शन में यत्र-तत्र तथा उपसंहार करते हुए विद्वान् लेखक ने अवश्य लिखा है- “सौर, स्कान्द तथा गाणपत्य जैसे तन्त्रों के विषय में अभी बहुत कम लिखा गया है”।” हालैण्ड से प्रकाशित हुए- तन्त्रशास्त्र तथा आगमशास्त्र’ नामक दो पुस्तकों में इनका सामान्य परिचय दिया गया है। स्मार्ततन्त्रों की समृद्धि के सन्दर्भ में सम्मोहनतन्त्र में विवेचन प्राप्त होता है, जो शक्तिसंगमतन्त्र छिन्नमस्ताखण्ड का ही एक अंश है- ऐसा आचार्य व्रजवल्लभ द्विवेदी का मानना है।

किसी समय कोणार्क, कालपी तथा मुलतान (अब पाकिस्तान) में स्थित देवालयों में भगवान् भास्कर की त्रैकालिक उपासना की जाती थी। वर्तमान में सम्पूर्ण संसार में डाला छठ (कार्त्तिकमास) में होने वाला सूर्यव्रतोपासना इसका साक्षात् प्रमाण है।

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