Shakti Ank (शक्ति-अङ्क)
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| Author | - |
| Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
| Language | Hindi |
| Edition | 25th edition |
| ISBN | - |
| Pages | 767 |
| Cover | Hard Cover |
| Size | 19 x 3 x 27 (l x w x h) |
| Weight | |
| Item Code | GP0107 |
| Other | Code - 41 |
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शक्ति अङ्क (Shakti Ank) महाशक्ति ही परब्रह्म परमात्मा हैं, जो विभिन्न रूपोंमें विविध लीलाएँ करती हैं। इन्हींकी शक्तिसे ब्रह्मा विश्वकी उत्पत्ति करते हैं, इन्हींकी शक्तिसे विष्णु विश्वका पालन करते हैं और शिव जगत्का संहार करते हैं, अर्थात् ये ही सृजन-पालन-संहार करनेवाली आद्या नारायणी शक्ति हैं। ये ही महाशक्ति नवदुर्गा, दस महाविद्या हैं, ये ही अन्नपूर्णा, जगद्धात्री, कात्यायनी और ललिताम्बा हैं। गायत्री, भुवनेश्वरी, काली, तारा, बगला, षोडशी, त्रिपुरा, धूमावती, मातङ्गी, कमला, पद्मावती, दुर्गा तथा काली इन्हींके रूप हैं। ये ही शक्तिमान् और ये ही शक्ति हैं। ये ही नर और नारी हैं और ये ही माता, धाता तथा पितामह भी हैं।
अपने यहाँ सर्वव्यापी चेतन सत्ता अर्थात् अपने उपास्यकी उपासना मातृरूपसे, पितृरूपसे अथवा स्वामीरूपसे किसी भी रूपसे की जा सकती है, किंतु वह होनी चाहिये भावपूर्ण और अनन्य। लोकमें सम्पूर्ण जीवोंके लिये मातृभावकी महिमा विशेष है। व्यक्ति अपनी सर्वाधिक श्रद्धा स्वभावतः माँके चरणोंमें अर्पित करता है, क्योंकि माँकी गोदमें ही सर्वप्रथम उसे लोकदर्शनका सौभाग्य प्राप्त होता है, इस प्रकार माता ही सबकी आदि गुरु है। उसीकी दया और अनुग्रहपर बालकोंका ऐहिक तथा पारलौकिक कल्याण निर्भर करता है। इसीलिये ‘मातृदेवो भव’, ‘पितृदेवो भव’, ‘आचार्यदेवो भव’- इन मन्त्रोंमें सर्वप्रथम स्थान माताको ही दिया गया। जो भगवती महाशक्ति-स्वरूपिणी देवी, समष्टिरूपिणी माता और सारे जगत्की माता है, वही अपने समस्त बालकों (अर्थात् समस्त संसार) के लिये कल्याणपथ- प्रदर्शिका, ज्ञानगुरु है।
वस्तुतः परमात्मरूपा महाशक्ति ही विविध शक्तियोंके रूपमें सर्वत्र क्रीडा कर रही हैं- ‘शक्तिक्रीडा जगत्सर्वम्’ जहाँ शक्ति नहीं वहाँ शून्यता ही है। शक्तिहीनका कहीं भी समादर नहीं होता। ध्रुव और प्रह्लाद भक्तिशक्तिके कारण पूजित हैं। गोपियाँ प्रेमशक्तिके कारण जगत्पूज्य हुई हैं। हनुमान् और भीष्मकी ब्रह्मचर्यशक्ति, व्यास और वाल्मीकिकी कवित्वशक्ति, भीम और अर्जुनकी शौर्यशक्ति, हरिश्चन्द्र और युधिष्ठिरकी सत्यशक्ति, प्रताप और शिवाजीकी वीरशक्ति ही सबको श्रद्धा और समादरका पात्र बनाती है। सर्वत्र शक्तिकी ही प्रधानता है। दूसरे शब्दोंमें कहा जा सकता है- ‘समस्त विश्व महाशक्तिका ही विलास है।’ देवीभागवतमें स्वयं भगवती कहती हैं- ‘सर्व खल्विदमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम्।’ अर्थात् समस्त विश्व मैं ही हूँ, मुझसे अतिरिक्त दूसरा कोई सनातन या अविनाशी तत्त्व नहीं है।
कल्याणने अपने नवें वर्ष सं० १९९१ (सन् १९३५) में विशेषाङ्करूपमें शक्ति-अङ्कका प्रकाशन किया था; जिसमें शक्ति-मीमांसासे सम्बन्धित तात्त्विक निबन्धोंके साथ शास्त्रोंमें शक्तिके विविध स्वरूप, शक्ति-उपासनाकी विधाएँ, महाशक्तिके विविध स्वरूपोंका विवेचन, भारतीय संस्कृतिके आधार प्राचीन आर्षग्रन्थोंमें वर्णित शक्ति-उपासनाका दिग्दर्शन, शक्ति-उपासनाकी पद्धति, शक्तिके उपासक सिद्ध-साधक-संत और भक्तोंका परिचय, शक्तिसे सम्बद्ध पौराणिक कथाओंका यथासाध्य संकलन, शक्ति- साहित्य-सम्बन्धी दुर्लभ सामग्रियोंका संकलन आदि प्रस्तुत करनेकी चेष्टा की गयी है।
बहुत समयसे कल्याणके प्रेमी पाठकों तथा भक्त महानुभावोंद्वारा इस विशेषाङ्कके पुनर्मुद्रणके लिये विशेषरूपसे निरन्तर आग्रह होता आ रहा था, कार्याधिक्यके कारण यह सम्भव नहीं हो सका। भगवती पराम्बाकी कृपासे इसको पुनः प्रकाशित कर जनता जनार्दनकी सेवामें प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा है सब लोग इससे लाभान्वित होंगे।





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