Shankhyayan Grihyasutram (शाख्ङायनगृह्यसूत्रम्)
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Author | Dr. Jamuna Pathak |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Series Office |
Language | Hindi |
Edition | 2012 |
ISBN | 978-81-218-0321-2 |
Pages | 335 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0493 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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शाख्ङायनगृह्यसूत्रम् (Shankhyayan Grihyasutram) ऋग्वेदीय गृह्यसूत्रों के प्रकाशन की शृङ्खला में शाङ्खायनगृह्यसूत्र का प्रकाशन द्वितीय कड़ी है। सम्म्रति ऋग्वेद के तीन गृह्यसूत्र उपलब्ध है- आश्वलायनगृह्यसूत्र, शाङ्खायनगृह्यसूत्र और कौषीतकिगृह्यसूत्र। यद्यपि तीनों गृह्यसूत्रों का प्रकाशन संस्कृतभाष्य के साथ हुआ है जो हिन्दी माध्यम से वेद का अध्ययन करने वाले व्यक्ति के अवबोधन के लिए दुरूह है। हिन्दी माध्यम से वेद का अध्ययन करने वाले जिज्ञासुओं की सुविधा को दृष्टि में रखकर इन तीनों गृह्यसूत्रों के हिन्दी व्याख्या के साथ प्रकाशन की योजना बनायी गयी। इस योजना के अन्तर्गत आश्वलायनगृह्यसूत्र का प्रकाशन चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस वाराणसी से हो चुका है। शाङ्खायनगृह्यसूत्र के प्रस्तुत संस्करण का प्रकाशन भी संस्कृतभाष्य और हिन्दी व्याख्या के साथ चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस से हो रहा है।
गृह्य का तात्पर्य पत्नी के साथ किये जाने वाले कर्म से है। इन कर्मों का विधान जिन सूत्रग्रन्थों में उपलब्ध होता है, वे गृह्यसूत्र कहलाते हैं। गृह्यसूत्र स्मृतियों के ऊपर आधारित होने या स्मृति-विषयों का प्रतिपादन करने के कारण स्मार्त ग्रन्थ भी कहे जाते हैं। श्रौतग्रन्थों में पुरोहितवर्ग द्वारा तीन या इससे अधिक अग्नियों में सम्पादित होने वाले महायज्ञों के धार्मिक क्रिया-कलापों का वर्णन है। गृह्याग्नि में सम्पन्न होने वाले संस्कारों, प्रतिदिन की धार्मिक- क्रियाओं से सम्बन्धित तथा गृहस्थ के कर्मों की विवेचना करने के कारण द्वितीय श्रृङ्खला को गृह्यसूत्र कहते हैं। वस्तुतः गृह्यसूत्र भारतीय पारिवारिक जीवन के अत्यन्त सुन्दर आकड़ा प्रस्तुत करने वाले ग्रन्थ हैं। इसमें धरेलू जीवन से सम्बद्ध दैनिक, पाक्षिक, मासिक तथा वार्षिक यज्ञों का विवेचन किया गया है। गृह्यसूत्रों में वर्णित यज्ञों का रूप कुछ निश्चित हुआ करता है। गृह्याग्नि से यज्ञाग्नि प्रज्वलित की जाती है और उसमें देवताओं के लिए आहुतियाँ दी जाती हैं। इन दैनिकयज्ञों के अतिरिक्त प्रत्येक आर्य का यह धार्मिक कर्तव्य होता है कि इन्द्रादि देवों से सम्बन्धित यज्ञों को करे।
शाङ्खायनगृह्यसूत्र ऋग्वेदान्तर्गत शांखायन शाखा का गृह्यसूत्र है। यह गृह्यसूत्र छः अध्यायों में विभक्त है। प्रत्येक अध्याय के अन्तर्गत खण्ड हैं। खण्डों में सूत्रों का सन्निवेश है। प्रथम अध्याय के अन्तर्गत २८ खण्ड, द्वितीय अध्याय में १७ खण्ड, तृतीय अध्याय में १४ खण्ड, चतुर्थ अध्याय में १९ खण्ड, परिशिष्टाख्य पञ्चम अध्याय में १२ खण्ड और षष्ठ अध्याय में ६ खण्ड हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण ग्रन्थ ९६ खण्डों में विभक्त है। इस ग्रन्थ पर श्रीकृष्णजित् के पुत्र नारायण द्वारा प्रणीत गृह्यप्रदीप नामक भाष्य उपलब्ध है। इस भाष्य और शशिप्रभानामक हिन्दी व्याख्या के साथ इस संस्करण का प्रकाशन किया जा रहा है।
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