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Shiv Arti (शिव आरती)

68.00

Author Swami Maheshanad Giri
Publisher Dakshinamurty Math Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2nd edition
ISBN -
Pages 67
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code dmm0055
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Description

शिव आरती (Shiv Arti) प्रस्तुत शिव आरती जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, भगवान् सर्वेश्वर सदाशिव की स्तुति है। संस्कृत वाङ्मय में शिव-स्तुति पर व्यापक साहित्य उपलब्ध है। शान्तता शिवता और अद्वैतता व्यवहार-भूमि में एक ही शिव तत्त्व के तीन पार्श्व हैं परन्तु परमार्थ में वह चिन्मय-स्वरूप ही है। अधिकतर लोग शिव के निरालम्ब, निर्विकार, सत्, चित्, आनन्द, निरपेक्ष रूप से दूर ही रहे हैं। यह सहज भी है। देश-काल-परिस्थिति से आबद्ध जीव से ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती की वह इस सूक्ष्मतत्त्व को इतनी सहजता से ग्रहण कर सकेगा। शिव का साकार रूप भक्तों के मन को मोहित करता रहा है। इसी भावना से भक्त भगवान् का स्वरूप भी हो जाता है।

जय गंगाधर हर शिव जय गिरिजाधीश शिव की आरती का यह अष्टक बड़े मनोमोहक भावों से सजा है। स्तुति में संस्कृत वाक्य-रचना की छाप, ज़्यादा है; परन्तु भाव सरल और सुबोध है। मठ-मन्दिरों में और साधक प्रतिदिन के पूजन आरती सन्ध्या में इसका गान करते हैं। विगत पच्चीस वर्ष पूर्व पूज्यपाद आचार्य महामण्डलेश्वर श्री १०८ स्वमी महेशानन्द गिरिजी महाराज द्वारा इसपर प्रवचन किया गया था, परन्तु प्रतिलिपि के उपलब्ध नहीं होने से प्रकाशन नहीं किया जा सका। शिवकृपा से अकस्मात् उपलब्ध होने पर इसका अविलम्ब प्रकाशन संवत् २०६३ में किया गया। कालक्रम में पूर्व मुद्रित प्रतियाँ दुर्लभ होने से इस अत्युपयोगी व्याख्यान को प्रकाशित किया जा रहा है। महाराज श्री से श्रवणकर श्री रमणलाल अग्रवाल ने जो संकेत एकत्र किये उन्हें ही यहाँ यथासंभव व्यवस्थित किया गया है। आशा है, साधक-भक्तों को शिव-आरती की यह व्याख्या अवश्य ही आनन्द देगी।

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