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Shiv Tattva Rahasyam (शिवतत्त्वरहस्यम् एवं श्रीशिवोत्कर्षमञ्जरी)

54.00

Author Pandit Shaligram Dwivedi
Publisher Dakshinamurty Math Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2015
ISBN -
Pages 202
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code dmm0048
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Description

शिवतत्त्वरहस्यम् श्रीशिवोत्कर्षमञ्जरी (Shiv Tattva Rahasyam) श्रीनीलकण्ठ दीक्षित सन् १६१३ ईस्वी में उत्पन्न गम्भीर विद्वान् एवं परमेश्वरभक्त प्रसिद्ध हुए हैं। तमिलनाडु में आदरणीय माने गये दीक्षित-कुल में श्रीमद् अप्पयदीक्षित के भतीजे नारायण दीक्षित एवं भूमिदेवी के आप द्वितीय पुत्र थे। मदुरै में नीलकण्ठ प्रधान मन्त्री भी रहे थे। आपका पुराण-आगम शास्त्रों में अत्यन्त गहन प्रवेश सभी कृतियों में प्रत्यक्ष होता है। संहितात्मक स्कन्दपुराण के शिवरहस्य खण्ड में भगवान् शंकर के अष्टोत्तरशतनाम उपलब्ध हैं, जो उपासक-समाज में आदरपूर्वक स्मरण किये जाते हैं एवं शिवपूजांगरूप से बिल्वाद्यर्चन में प्रयोग भी किये जाते हैं। इन नामों के महत्त्व को समझकर श्रीदक्षिणामूर्ति मठ प्रकाशन के संस्थापक आचार्य महामण्डलेश्वर श्री स्वामी महेशानन्दगिरि जी महाराज ने प्रायः चालीस वर्ष पूर्व इन पर हिन्दी भाषा में संक्षिप्त विवरण उपस्थित किया था। कालान्तर में भास्कर रायकृत पद्यात्मक व्याख्या एवं हिन्दी अनुवाद सहित भी ये नाम संस्था से प्रकाशित हुए। शिवकृपा से, दो वर्ष पूर्व नीलकण्ठ दीक्षित की ‘शिवतत्त्वरहस्य’ नामक इन्हीं नामों की व्याख्या दृष्टि में आयी जो सन् १९१५ में श्रीरंगम् से प्रकाशित हुई थी, किन्तु अब सुदुर्लभ है। ग्रन्थ की महत्ता को देखकर इसे शीघ्र प्रकाश में लाने का निश्चय किया एवं इसमें एकत्र उद्धरणों का मूल खोजकर ग्रन्थ को सर्वांगपूर्ण बनाने का कार्य श्रीदक्षिणामूर्ति संस्कृत महाविद्यालय में अध्यापनरत पण्डित श्री शालिग्राम द्विवेदी को सौंपा गया, जिन्होंने श्रद्धामात्र से प्रेरित हो अत्यन्त मनोयोग से इस घोर परिश्रम को सम्पन्न कर यह ग्रन्थ सभी जिज्ञासुओं एवं शिवभक्तों के लिये सुलभ किया।

‘नीलकण्ठविजयचम्पू’, ‘शिवलीलार्णव’, ‘गंगावतरण’ के अतिरिक्त अनेक लघुकाव्य भी नीलकण्ठ ने रचे। इनमें ‘कलिविडम्बन’ विद्वानों में सुपरिचित है। ‘आनन्दसागरस्तव’ देवी की अलौकिक स्तुति है तथा ‘शिवोत्कर्षमञ्जरी’ शिव के उत्कर्ष की स्थापना करती अद्भुत स्तुति है। सभी देवताओं से महादेव की श्रेष्ठता प्रकट करना इसमें प्रधान है। इस बहाने अनेक शिवलीलाओं का संग्रह हो गया है। यद्यपि स्मार्त परम्परा में गुणमूर्तियों के उत्कर्ष-अपकर्ष का महत्त्व नहीं क्योंकि सभी एक की मूर्तियाँ हैं तथापि निज इष्ट की महत्ता का चिन्तन सहज होने से भक्त पुराणादि से उन प्रसंगों का चयन करे यह स्वाभाविक है। इन अभिव्यक्तियों से अन्य मूर्तियों का अपकर्ष अभिप्रेत नहीं, केवल अपने आराध्य की महिमा का चिन्तन है।

इन श्लोकों का सरलार्थ एवं सूचित सन्दर्भों का संकलन श्रीस्वामी चिद्घनानन्द, श्रीमती सरोजा एवं सुश्री हेमा मालानी के सहयोग से ब्रह्मचारी श्री सुन्दरचैतन्य जी (वेदान्ताचार्य, प्राचार्य श्रीविश्वनाथ संस्कृत महाविद्यालय, दिल्ली) ने उपस्थित किया जो समस्त शिवभक्तों पर आपका महान् उपकार है। इण्टरनैट पर उपलब्ध तमिलव्याख्या का इस कार्य में अतीव उपयोग रहा। इस समग्र कार्य में शिवभक्तिभाव से स्वर्गीय श्री हरीश झवेरी एवं श्री अशोक ने आर्थिक सेवा प्रदान कर प्रभूत पुण्य अर्जित किया है। शिवविचार शिवभक्तों तक पहुँचाना पराभक्ति का ही स्वरूप है। इस प्रयास से वे कल्याण के भागी बने यही भगवान् सदाशिव से प्रार्थना है। इसके परिशेष में पुराणोक्त ‘शिवोत्कर्षस्तोत्र’ तथा हरदत्त प्रणीत ‘हरिहरतारतम्यस्तोत्र’ भी दिये जा रहे हैं। आशा है भक्त शिव-विचारों में अवगाहनार्थ इस संस्करण का उपयोग करेंगे।

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