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Shri Shiv Bhakta Vilas (श्रीशिवभक्तविलासः)

125.00

Author Swami Swaymprakash Giri
Publisher Dakshinamurty Math Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1997
ISBN -
Pages 485
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code dmm0051
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Description

श्रीशिवभक्तविलासः (Shri Shiv Bhakta Vilas) शिवभक्तविलास में पृ. ५ पर जिस नवधा भक्ति का वर्णन किया है, वह वैष्णव नवधा भक्ति से समान होते हुये भी भिन्न है। वहाँ का स्मरण यहाँ ध्यान है, पादसेवन यहाँ शिवदर्शन है। मोक्ष में पृ. ६ श्लोक ५१-३ में स्पष्ट ही प्रतिबिम्ब का उपाधिनाश से विम्ब रूप में स्थित होना कहा है। इस प्रकार का अद्वैत किसी भी वैष्णवाचार्य ने स्वीकृत नहीं किया है। अतः उत्तर भारत में निर्गुनिये भक्त भी केवलाद्वैती नहीं बन पाये। यदि शिवभक्ति की परम्परा उन्हें मिली होती तो यह पक्ष वे स्पष्टतः प्रतिपादित कर पाते। इस प्रकार हिन्दी प्रान्तों में शिवभक्ति की परम्परा चलती तो रही परन्तु वह गौण बनी रही। पुनीतवती का आनन्दताण्डवदर्शन का वर्णन (पृ. २४९) भी ऐसा अद्भुत है कि उसके सामने कबीर का गहनगुफा का वर्णन भी फीका पड़ जाता है। सम्भवतः काश्मीर की शिवभक्ता लल्लेश्वरी को छोड़कर ऐसा अद्भुत भक्त स्त्रियों में विश्व में कहीं नहीं मिल सकता। इसी प्रकार अन्त्यज नन्द का अग्नि में जलकर निकलना है। पंचीकृत पंचमहाभूत ही अन्त में उत्पन्न होने वाले होने से अन्त्यज हैं। बाधरूपी ज्ञानाग्नि में जलकर यह दिव्यशिव मात्र ही रह जाता है। दक्षिण द्वार में चिदम्बर में सनकादि संन्यासी वेदान्त चर्चा में रत थे, एवं उसी दक्षिण द्वार से उसका प्रवेश पुराण ने प्रतिपादित किया है, एवं उसके रूप का वर्णन करते हुए भी दण्ड, कमण्डलु, जटा का ही वर्णन है।

शिवभक्त विलास अद्भुत ग्रन्थ है। इसके जैसा भक्त चरित्र का समुद्र विश्व में दुर्लभ है। इसका तामिलीकरण तो बहुत पहले हो गया था। परन्तु उत्तर भारत में इसका परिचय नहीं जैसा ही था। वस्तुतः हिन्दी में शिवभक्ति का साहित्य ही अत्यन्त दुर्लभ है। स्वामी स्वयंप्रकाशगिरि जी ने इसका अनुवाद उपलब्ध करा कर हिन्दी जनता को उपकृत किया है। शिवभक्तों को पाथेय दिया है। विलास में माणिक्यवाक् चरित्र का अभाव भी पूर्ण किया है। श्री राजगोपालन् ने इसकी प्राचीन मुद्रित प्रति उपलब्ध न कराई होती तो यह प्रयत्न संभव ही नहीं होता। विद्वान् अनुवादक ने न केवल अनुवाद किया पर कई स्थानों पर अपना अद्भुत विश्लेषण, व रूपकों से रूप्य प्रतिपादन भी किया है। अनुवादक ने प्रयत्नपूर्वक सभी स्थानों के वर्तमान नामों की सूची देकर भक्तों की तीर्थयात्रा को सुगम बनाया है। निर्मल चित्रण प्रेस के कपूर परिवार ने निःस्वार्थ भाव से इसका प्रकाशन किया है। इतः पूर्व भी उनका सहयोग रहा है। उनको हमारा शिव ज्ञान में स्थित होना रूप भक्ति प्राप्ति का आशीर्वाद है। इससे सभी लाभ उठाकर शिवभक्ति प्राप्त करें।

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