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Shri Ganesh Ank (श्रीगणेश अङ्क)

250.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Sanskrit & Hindi
Edition 29th edition
ISBN -
Pages 672
Cover Hard Cover
Size 19 x 3 x 27 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0125
Other Code - 657

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Description

श्रीगणेश अङ्क (Shri Ganesh Ank) मानव जीवनका चरम लक्ष्य देवत्वकी प्राप्ति है और आसुरभाव उसमें प्रधान प्रबल विघ्न है। भगवान् गणेश विघ्नेश्वर हैं। उनकी कृपादृष्टि होनेसे विघ्नोंका पर्वत अपने-आप धराशायी होकर क्षणमात्रमें विनष्ट हो जाता है। अतएव साधना या उपासना अचवा किसी भी धार्मिक तथा मांगलिक कार्यके आरम्भमें श्रीगणेशका पूजन-स्तवन किये बिना सिद्धि प्राप्त होना सम्भव नहीं है। हमारे सनातन हिन्दू- धर्मके आचारानुसार समस्त कार्योंके आरम्भमें श्रीगणेशके स्मरण, नमन, स्तवन और पूजन आदिका विधान है। इसीलिये किसी कार्यका शुभारम्भ’ श्रीगणेश’ नामोच्चारणपूर्वक किया जाता है। ‘आदी पूज्यो विनायकः ‘- इस उक्तिके अनुसार श्रीगणेशको अग्रपूजा सर्वत्र सुप्रसिद्ध और प्रचलित ही है।

श्रीगणेशजी सर्वस्वरूप, परात्पर, पूर्णब्रह्म साक्षात् परमात्मा हैं। ‘गणपति अथर्वशीर्षमें ‘त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रः’ इत्यादिके द्वारा उन्हें सर्वरूप कहा गया है। ‘गणेश’ शब्दका अर्थ है – जो समस्त जीव-जातिके ‘ईश’ अर्थात् स्वामी हों। ‘गणानां जीवजातानां य ईशः (स्वामी)- स गणेशः।’ सृष्टिके उत्पादनमें आसुरी शक्तियोंद्वारा जो विघ्न बाधाएँ उपस्थित की जाती हैं, उनका निवारण करनेके लिये स्वयं परमात्मा गणपतिके रूपमें प्रकट होकर ब्रह्माजीके कार्यमें सहायक होते आये हैं। ऋग्वेद-यजुर्वेद आदिके ‘गणानां त्वा गणपतिः हवामहे’- इत्यादि मन्त्रोंमें भगवान् गणपतिका सुस्पष्ट उल्लेख मिलता है। वहाँ ब्रह्मा, विष्णु आदि गणोंके अधिपति श्रीगणनायक ही परमात्मा कहे गये हैं। धर्मप्राण भारतीय जन वैदिक एवं पौराणिक मंत्रोंद्वारा अनादिकालसे इन्हीं अनादि तथा सर्वपूज्य भगवान् गणपतिको पूजा करते चले आ रहे हैं। तात्पर्य, गणपति चिन्मय हैं, आनन्दमय हैं, ब्रह्ममय हैं और सच्चिदानन्दरूप हैं। उन्हींसे इस जगत्‌की उत्पत्ति होती है और उन्होंके कारण इसकी स्थिति है तथा अन्तमें उन्हींमें इस विश्वका लय हो जाता है। अतः ऐसे परमतत्त्वका समस्त कार्योंके आरम्भमें स्मरण तथा पूजन उपयुक्त ही है।

भगवान् श्रीगणेशजीकी अनन्तानन्त महिमा तथा अर्चनाकी प्रक्रियासे जन-सामान्यको परिचित करानेके उद्देश्यसे ‘कल्याणके ४८वें वर्ष । सन् १९७४ ई०] में’ श्रीगणेश- अङ्कका प्रकाशन किया गया था। उसी समयसे इसके पुनर्मुद्रणकी पाठकोंके द्वारा निरन्तर माँग बनी हुई थी। सुधी पाठकोंके आग्रहको स्वीकार करके सन् १९९५ ई० में इसका पुनर्मुद्रण किया गया। उसी समयसे अबतक केवल विशेषाङ्कका पुस्तकरूपमें प्रकाशन किया जाता रहा। बीच-बीचमें परिशिष्टाङ्कको उपयोगी सामग्रीसहित प्रकाशित करनेके लिये पाठकोंके सुझाव भी आते रहे। भगवान् श्रीविघ्नेश्वरकी असीम अनुकम्पासे अब परिशिष्टाङ्कसहित परिवर्धित संस्करणके रूपमें इस विशेषाङ्कको पाठकोंकी सेवामें प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्षका अनुभव हो रहा है। इसमें परिशिष्टाङ्क जोड़ दिये जानेसे पूर्व प्रकाशित विशेषाङ्कसे १६८ पृष्ठ बढ़ गये हैं। अतः जिनके पास पूर्व प्रकाशित विशेषाङ्क है, ऐसे पाठकोंके लिये भी इसकी उपयोगिता बढ़ गयी है। आशा है, कल्याणके अन्य पुनर्मुद्रित विशेषाङ्कोंकी भाँति बहुआयामी विषयोंके इस विशद् संग्रहको अधिकाधिक संख्यामें अपनाकर पाठकगण लाभान्वित होंगे।

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