Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.

Shri Krishna Ki Amrit Vani (श्रीकृष्णा की अमृतवाणी)

25.00

Author Gopal Thakur
Publisher Pilgrims Publication
Language Hindi
Edition 2007
ISBN 81-7769-550-9
Pages 25
Cover Paper Back
Size 10 x 1 x 15 (l x w x h)
Weight
Item Code PGP0034
Other Dispatched in 1-3 days

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

श्रीकृष्णा की अमृतवाणी (Shri Krishna Ki Amrit Vani) परमेश्वर के सभी अवतार में श्रीकृष्ण भगवान् को पूणर्णावतार माना गया है। ऐसा कोई भारतीय नहीं होगा, जिसके मन में श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति न हो। भारतीय चिंतन के वांगमय को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले वसुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। देवकी अति क्रूर शासक कंस की बहन थी। अपनी बहन और उसके पति को जब वह रथ म बिठाकर ले जा रहा था, तो एक आकाशवाणी हुई, “अरे मूर्ख, इस दम्पति की आठवीं सन्तान के द्वारा ही तू मारा जायेगा।” यह सुनकर कंस आग बबूला हो गया और अपनी बहन को मारने के लिये आगे बढ़ा, पर वसुदेव ने उसे शान्त करते हुए कहा कि जैसे-जैसे उनकी सन्तानों का जन्म होगा, कंस को सौंप देंगे।

आठवीं संतान के जन्म के पूर्व वसुदेव और देवकी को कैद कर लिया गया और श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ। दैवी माया से कंस के सैनिक निद्राग्रस्त हो गये, वसुदेव की बेड़ियाँ और फाटक खुल गये तथा तब वासुदेव शिशु को यमुना के दूसरी ओर गोकुल में नन्द के यहां सुरक्षित पहुंचा कर उनकी नवजात कन्या को ले आये। कंस को देवकी की आठवीं सन्तान के जन्म की सूचना मिलते ही वह नवजात शिशु को मार डालने के लिये तत्काल कारागार पहुंचा, पर उसे आश्चर्य हुआ कि शिशु तो एक कन्या है। फिर भविष्यवाणी को याद करके कन्या को ज्योंही मारना चाहा, वह उसके हाथ से छूटकर ऊपर आकाश में चली गयी।

किशोरावस्था में कृष्ण मथुरा से वृन्दावन में चले आये, जहां गोप-गोपियाँ उनके सहचर थे। गोपियों में मुख्य श्रीराधा थी। राधा को प्रेममय आदिशक्ति माना जाता है। कुरुक्षेत्र के महान् धर्मयुद्ध के सद्यः पूर्व अब अर्जुन ने अपने अग्रजों और आत्मीय-स्वजनों को मरने-मारने के लिये तत्पर देखा, तब वे विषाद से भर गये। अर्जुन के मोह को दूर करने के लिये श्रीकृष्ण ने युद्ध क्षेत्र में अर्जुन को शान्ति और आनन्द का स्त्रोत ‘गीता’ का उपदेश दिया। गीता में सात सौ श्लोक अठारह अध्यायों में विन्यस्त है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Shri Krishna Ki Amrit Vani (श्रीकृष्णा की अमृतवाणी)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×