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Srimad Bhagwat Gita (श्रीमद्भगवतगीता)

60.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Sanskrit & Hindi
Edition 120th edition
ISBN -
Pages 255
Cover Hard Cover
Size 14 x 1 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0052
Other Code - 502

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Description

श्रीमद्भगवतगीता (Srimad Bhagwat Gita) (मोटे अक्षरवाली)

जो मनुष्य शुद्ध चित्त होकर प्रेम पूर्वक इस पवित्र गीता शास्त्र का पाठ करता है, वह भय और शोक आदि से रहित होकर विष्णु धाम को प्राप्त कर लेता है॥ १॥

जो मनुष्य सदा गीता का पाठ करने वाला है तथा प्राणायाम में तत्पर रहता है, उसके इस जन्म और पूर्व जन्म में किये हुए समस्त पाप निःसन्देह नष्ट हो जाते हैं॥ २॥

जल में प्रतिदिन किया हुआ स्नान मनुष्यों के केवल शारीरिक मलका नाश करता है, परंतु गीता ज्ञानरूप जल में एक बार भी किया हुआ स्नान संसार-मल को नष्ट करने वाला है ॥ ३ ॥

जो साक्षात् कमल नाभ भगवान् विष्णुके मुखकमलसे प्रकट हुई है, उस गीताका ही भलीभाँति गान (अर्थसहित स्वाध्याय) करना चाहिये, अन्य शास्त्रोंके विस्तारसे क्या प्रयोजन है ॥४॥

जो महाभारतका अमृतोपम सार है तथा जो भगवान् श्रीकृष्णके मुखसे प्रकट हुआ है, उस गीतारूप गंगाजलको पी लेनेपर पुनः इस संसारमें जन्म नहीं लेना पड़ता ॥५॥

सम्पूर्ण उपनिषदें गौके समान हैं, गोपालनन्दन श्रीकृष्ण दुहनेवाले हैं, अर्जुन बछड़ा है तथा महान् गीतामृत ही उस गौका दुग्ध है और शुद्ध बुद्धिवाला श्रेष्ठ मनुष्य ही इसका भोक्ता है॥६॥

देवकीनन्दन भगवान् श्रीकृष्णका कहा हुआ गीताशास्त्र ही एकमात्र उत्तम शास्त्र है, भगवान् देवकीनन्दन ही एकमात्र महान् देवता हैं, उनके नाम ही एकमात्र मन्त्र हैं और उन भगवान्की सेवा ही एकमात्र कर्तव्य कर्म है॥७॥

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