Siddhanta Shiromani (सिद्धान्तशिरोमणि:)
₹351.00
Author | Dr. Murlidhar Chaturvedi |
Publisher | Sampurnananad Sanskrit Vishwavidyalay |
Language | Sanskrit |
Edition | 3rd edition |
ISBN | 81-7270-246-9 |
Pages | 554 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SSV0015 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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सिद्धान्तशिरोमणि: (Siddhanta Shiromani) ‘सिद्धान्त शब्द गणितपद वाचक है, ऐसा कथन गणेशदेवज्ञ का केशवकृत-मुहूर्ततत्त्व की टीका में मिलता है।” तथा [वासना वात्तिक में नृसिंहदेवज्ञ ने कहा है कि सङ्ख्या की या गिनने की विधि जिस शास्त्र में हो वह गणित शास्त्र कहलाता है। वह गणित भी चार प्रकार का होता है। १ जिसमें स्पष्ट सर्वजन प्रसिद्ध जोड़ने, घटाने, गुनने व भागादि की विधि १, २, ३ आदि अड्डों द्वारा हो, वह व्यक्तगणित होता है। २ जिसमें अभीष्ट सिद्धि के लिये यावत्, तावत्, कालक आदि की सापेक्ष्यबुद्धि से क्रिया होती है, उसे अव्यक्त गणित कहते हैं। ३ जहाँ पर फलादि संस्कारों द्वारा ग्रहमिति का ज्ञान होता है वह ग्रहगणित और वेद्यादि से ग्रहकर्म वासना अर्थात् युक्ति युत कर्मों की गणना हो वह गोलगणित होता है, क्योंकि वेध गोल के आधित होते हैं। इस लिये उक्त चार प्रकार की गणित जिस में हो वह गणित होता है, तथा वही सिद्धान्त भी कहलाता है। कहा है कि-व्यक्ताव्यक्तभगोलवासनमयः सिद्धान्त आदि इति]
व्यक्ताव्यक्तादि की सोपपक्तिक चर्चा जिसमें हो वह सिद्धान्त नाम से प्रसिद्ध होता है। अन्य आचार्यों का कहना है कि जिसमें कल्पादि से ग्रहों का आनयन होता है. वह सिद्धान्त नाम वाला होता है। अथवा जिसमें युग, वर्ष, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, अहोरात्र, याम, मुहूर्त, नाड़ी, विनाड़ी, प्राण, युट्यादिकों का तथा सौर, चान्द्र, सावनादि मासों का विचार उपलब्ध हो वह सिद्धान्त ग्रन्थ कहलाता है।
ज्योतिष शास्त्र के इतिहास को देखने से मालूम होता है कि ज्योतिष के ग्रन्थों के दो विभाग हैं। १ आर्ष प्रगीत और दूसरा मनुष्यों द्वारा रचित ग्रन्थ भाग । इस समय में मुनि प्रणीत ग्रन्थों का प्रायः अभाव ही दृष्टिगोचर होता है। मनुष्य रचित सिद्धान्त ग्रन्थों में सर्व प्रथम आचार्य आर्य भट द्वारा रचित ‘आर्यभटीय’ ग्रन्य उपलब्ध होता है। इसके बाद वराहमिहिर कृत ‘पञ्चसिद्धान्तिका’ पुनः इसके अनन्तर ‘ब्रह्मगुप्त’ विरचित ‘ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त’ तत्पश्चात् ‘लल्लाचार्य’ द्वारा रचित ‘धीवृद्धिद’ तदनन्तर अन्य आचार्यों द्वारा विहित अन्य सिद्धान्त ग्रन्थ प्राप्त होते हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ के निर्माता का नाम भास्कर है। वर्तमान समय में दो भास्करों की प्रसिद्धि है।
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