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Shrimad Devi Bhagavat Maha Puran Set of 2 Vols. (श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण 2 भागो में)

600.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Sanskrit & Hindi
Edition 19th edition
ISBN -
Pages 1741
Cover Hard Cover
Size 19 x 7 x 27 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0085
Other Code - 1897 & 1898

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Description

श्रीमद्देवी भागवतमहापुराण 2 भागो में (Shrimad Devi Bhagavat Maha Puran Set of 2 Vols.) वास्तवमें श्रीमद्देवीभागवतकी समस्त कथाओं और उपदेशोंका सार यह है कि हमें आसक्तिका त्यागकर वैराग्यकी ओर प्रवृत्त होना चाहिये तथा सांसारिक बन्धनोंसे मुक्त होनेके लिये एकमात्र पराम्बा भगवतीकी शरणमें जाना चाहिये। मनुष्य अपने ऐहिक जीवनको किस प्रकार सुख-समृद्धि एवं शान्तिसे सम्पन्न कर सकता है और उसी जीवनसे जीवमात्रके कल्याणमें सहायक होता हुआ कैसे अपने परम ध्येय पराम्बा भगवतीकी करुणामयी कृपाको प्राप्त कर सकता है- इसके विधिवत् साधनोंको उपदेशपूर्ण इतिवृत्तों, कथानकोंके साथ इस पुराणमें प्रस्तुत किया गया है।

‘श्रीमद्देवीभागवत’ एवं ‘श्रीमद्भागवत’ इन दोनोंमें महापुराणकी गणनामें किसे माना जाय ? कभी- कभी यह प्रश्न उठता है। शास्त्रोंके अनुसार कल्पभेद कथाभेदका सुन्दर समाधान माना जाता है। इस कल्पभेदमें क्या होता है? देश, काल और अवस्थाका भेद है- ये तीनों भेद जड़प्रकृतिके हैं, चेतन संवित्‌में नहीं। कल्पभेदका एक अर्थ दर्शनभेद भी होता है। श्रीमद्भागवतका अपना दर्शन है और श्रीमद्देवीभागवतका अपना। दोनों ही दर्शन अपने-अपने स्थानपर सुप्रतिष्ठित हैं। श्रीमद्देवीभागवतका सम्बन्ध सारस्वतकल्पसे तथा श्रीमद्भागवतका सम्बन्ध पाद्यकल्पसे है।

‘श्रीमद्देवीभागवतपुराण’ के श्रवण और पठनसे स्वाभाविक ही पुण्यलाभ तथा अन्तःकरणकी परिशुद्धि, पराम्बा भगवतीमें रति और विषयोंमें विरति तो होती ही है, साथ ही मनुष्योंको ऐहिक और पारलौकिक हानि-लाभका यथार्थ ज्ञान भी हो जाता है, तदनुसार जीवनमें कर्तव्यका निश्चय करनेकी अनुभूत शिक्षा मिलती है, साथ ही जो जिज्ञासु शास्त्रमर्यादाके अनुसार अपना जीवनयापन करना चाहते हैं, उन्हें इस पुराणसे कल्याणकारी ज्ञान, साधन, सुन्दर एवं पवित्र जीवनयापनकी शिक्षा भी प्राप्त होती है। इस प्रकार यह पुराण जिज्ञासुओंके लिये अत्यधिक उपादेय, ज्ञानवर्धक, सरस तथा उनके यथार्थ अभ्युदयमें पूर्णतः सहायक है।

संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत सन् १९६० ई० में कल्याणके विशेषाङ्कके रूपमें प्रकाशित हुआ था। सुधीजनोंकी यह भावना थी कि भाषा-टीका सहित मूल श्रीमद्देवीभागवतका प्रकाशन किया जाय। इस दृष्टिसे पिछले दो वर्षों (सन् २००८ तथा २००९ ई०) में सम्पूर्ण देवी भागवत महापुराण का अनुवाद श्लोकसंख्यासहित कल्याणके विशेषाङ्कके रूपमें प्रकाशित किया गया, इसके साथ ही मूल देवीभागवत भी पुस्तक रूप में प्रकाशित की गयी। इस महापुराणका कलेवर बड़ा होनेके कारण विशेषाङ्कमें मूल और अर्थ दोनों देना सम्भव नहीं था। अतः अब पुस्तक रूप में भाषा टीकासहित श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण दो भागोंमें प्रकाशित किया जा रहा है।

भक्तजनोंमें श्रीमद्देवीभागवतकी कथा एवं पारायणके अनुष्ठानकी परम्परा भी है। इस दृष्टिसे श्रीमद्देवीभागवतकी पाठविधि तथा सांगोपांग पूजा-अर्चन-हवनका विधान प्रस्तुत किया गया है। साथ ही नवाहह्न-पारायणके तिथिक्रमका भी उल्लेख किया गया है। आशा है साधकगण इससे लाभान्वित होंगे।

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