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Stotra Maharnav Devi Khanda (स्तोत्र महार्णव देवी खंड)

220.00

Author Ajay Kumar Uttam
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 2012
ISBN 978-93-811-89-19-1
Pages 600
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0073
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Description

स्तोत्र महार्णव (देवी खंड) (Stotra Maharnav Devi Khanda) मंत्र एक विशेष प्रकार के शब्दों का संगुम्फन है, और उसमें एक विशेष स्वर लहरी उत्पन्न होती है। मंत्रों के शब्दों का संयोजन एक विशेष प्रकार से होता है। अतः उसका प्रभाव भी अधिकाधिक स्वर से निश्चित रूप से होता है। एक प्रकार के मंत्रों के द्वारा सम्बन्धित कार्य बल से कराये जाते हैं। मंत्र पाठ में हम अधिकारिक रूप से उपस्थित होते हैं। हम जो कुछ चाहते है वह होना ही चाहिये। इसीलिये मंत्र में सही प्रकार से उच्चारण आवश्यक है, पर यह आवश्यक नहीं है कि हमें मंत्र के अर्थ ज्ञात हो। जब मंत्र पाठ करते हैं तो उसके अर्थ को मानस में नहीं रखा जाता, केवल मात्र उसके प्रभाव को मानस में रखा जाता है कि इसके द्वारा इतनी अवधि में यह कार्य होना ही है। इसके विपरीत स्तोत्र में एक विशेष प्रकार की स्वर लहरी उत्पन्न करने की भावना होती है परन्तु उसमें बल नहीं होता। उसमें याचना होती है, हम याचना के द्वारा उस कार्य को सम्पन्न कराने की इच्छा रखते हैं।

अतः स्तोत्र पाठ में यदि त्रुटि भी हो जाती है तो कोई अन्तर नहीं पड़ता। अधिक से अधिक यह होगा कि हम जो कुछ जिस प्रकार से चाहते है, वह उस प्रकार से नहीं हो सकेगा। पर इसके विपरीत मंत्र उच्चारण में यह छूट नहीं है, यदि गलत ढंग से या गलत प्रकार से मंत्र उच्चारण होता है तो उसका विपरीत प्रभाव निश्चित रूप से पड़ता है, और हमें उस विपरीत प्रभाव को भोगना ही पड़ता है। अतः मंत्र उच्चारण करते समय विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। अधिक सावधानी की आवश्यकता है। एक भक्त के दृष्टिकोण से स्तोत्र या स्तुति शब्द कहते ही दो अलग-अलग अस्तित्वों का भान होता है- एक स्तुति करने वाला तथा दूसरा वह, जिसकी स्तुति की जा रही है।

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