Sugam Phalit Jyotish (सुगम फलित ज्योतिष)
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Author | Vishnu Sharma |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2015 |
ISBN | - |
Pages | 137 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0939 |
Other | Dispatched in 3 days |
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सुगम फलित ज्योतिष (Sugam Phalit Jyotish)
अन्तः शून्यो बहिरपि घट : शून्य एवाम्बरान्त –
रत्नपूर्णो बहिरपि तथा पूर्ण एवाम्बरेऽस्ति ।
एवं मातस्त्वमसि सततं शून्यपूर्णस्वरूपा
तत्वोत्तीर्णाऽप्यहमनुभवात्तत्वरूपा त्वमेव ।।
भारतीय वाङ्मय में वेदों का स्थान सर्वोपरि है। वेद के अंगभूत छह शास्त्रों में नेत्ररूप होने के कारण ज्यौतिषशास्र का महत्वपूर्ण स्थान है। कहा गया है–
अप्रत्यक्षाणि शास्त्राणि विवादस्तेषु केवलम् ।
प्रत्यक्षं ज्यौतिषं शास्त्रं चन्द्राकों यत्र साक्षिणौ ।।
अर्थात अन्य सब शास्त्रों में केवल शब्दों की सिद्धियों का विचार मात्र है तथा पूर्वापर पक्षों के निरूपण के कारण केवल विवाद ही उत्पन्न होते हैं। इसलिये उनकी श्रेष्ठता किसी उदाहरण से नहीं दिखलाई जा सकती है। परन्तु ज्यौतिष एक ऐसा शास्त्र है जिसके फलादेश प्रत्यक्ष अनुभूत किये जा सकते हैं और सूर्य-चन्द्रमा इस शास्त्र की श्रेष्ठता के साक्षी हैं। तात्पर्य यह है कि ज्यौतिपात्र ही एक ऐसा शात्र है जो भूत, भविष्य और वर्तमान का प्रत्यक्ष फल-निरूपण करने में समर्थ है। ज्यौतिषशास्र के भी मुख्यतः तीन भाग हैं —
सिद्धान्तसंहिताहोरा रूपं स्कन्धत्रयात्मकम् ।
वेदस्य निर्मलं चक्षुज्योंतिः शास्त्रमकल्मषम् ।।
अर्थात् १ सिद्धान्त, २ संहिता, ३ होरा इन तीन भागों में ज्यौतिषशास्त्र बॅटा हुआ है। जिस भाग से ग्रहों की गति, उदय, अस्त, ग्रहण आदि का पता चलता हो उसे ‘सिद्धान्त’ कहते हैं। जिस भाग से ग्रहों के फल, उल्कापात, संक्रान्ति, वृष्टि, महर्ष, समर्ष आदि निमित्त विषयक बातों का ज्ञान हो सके वह ‘संहिता’ कहलाता है तथा जिस भाग से ग्रहों की तात्कालिक स्थिति के द्वारा स्थानवशात् प्राणियों के सुख-दुःख, लाभ-हानि एवं कब क्या होगा इसका सही निर्णय हो सके वह ‘होरा’ कहलाता है। मुख्य रूप से गणित और फलित ये दो भेद कहे जा सकते हैं।
प्राचीन युग में ज्योतिर्विज्ञान परमोत्कर्ष पर था। इस युग में भी वराहमिहिर, आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, मुंजाल, भटोत्पल, शतानन्द, भास्कर आदि अनेक प्रतिभासम्पन्न ज्योतिर्विज्ञानाचार्य हुए हैं जिनके गणित तथा फलित सम्बन्धी आविष्कारों से आज भी वैज्ञानिक संसार चकित है। परन्तु समय ने पलटा खाया और तक्षशिला, नालन्दा, मगध, उज्जैन, तंजौर, काशी आदि की संसार प्रसिद्ध वेधशालाएँ और ज्यौतिष पाठशालाएँ नष्ट कर दी गयी। एक दिन इन्ही वेधशालाओं और अरण्यवासी तपस्वी आचार्यों के आश्रमों में फारस, यूनान, अरब, चीन, मिश्र आदि देशों के विद्या-पिपासु आकर तृप्त होते थे और यह दैव-विद्या प्राप्त कर अपने देशों में प्रचार करते थे। परन्तु समय के बदलते परिप्रेक्ष्य में विदेशी आक्रमण और हमारी अकर्मण्यता से यह अमूल्य लुप्त होती चली गयी। असंख्य ग्रन्थ जला दिये गये और जो बचे उन्हें विदेशी उठा ले गये। रावणसंहिता, पुलस्त्यसंहिता, जाबालिसंहिता, इन्द्रसंहिता, सूर्य- संहिता, अरुणसंहिता, जैमिनिसंहिता, रुद्रसंहिता आदि अनेकों गणित तथा फलित सम्बन्धी ग्रन्थों के नाम ही शेष रह गये हैं। अनेकों के नाम का भी पता नहीं । कदाचित् ही किसी विद्या की इतनी आश्चर्यजनक उन्नति एवं अवनति हुई हो। अस्तु! आज से ६०-७० वर्ष पहले तक उज्जैन, वाराणसी, मथुरा आदि के गुरुकुलाश्रमों में गद्दी-तकियों पर विराजमान गुरुदेवों के सामने शिष्यगण टाटपट्टी पर बैठकर विद्याध्ययन करते थे।
मैने स्वयं वि. सं. १९७९ से १९८२ (सन् १९२२ से १९२५) तक उज्जैन की सुप्रसिद्ध सांदीपन व्यास ज्यौतिष पाठशाला में परम पूज्य ज्योतिषार्णव पारावारीण महामहोपाध्याय श्रीमद् गुरु नारायण देव के श्रीचरणों में कुराली के सुप्रसिद्ध श्रद्धेय श्री पं० मुकुन्दवल्लभ जी राजज्योतिषी और डूंगरपुर के श्री पं० केशवलाल गदाधर राणा राजज्योतिषी के साथ टाटपट्टी पर बैठकर विद्याध्ययन किया है। गुरुदेव के बड़े गणेश, पंचमुखी हनुमान, साक्षीगोपाल, कैलाश नवग्रह, माँ गायत्री को महाकालेश्वर के कुण्ड के जल से स्नान कराकर विधिवत् पूजा करना हम जैसे कुछ चुने हुए गुरुभक्त शिष्यों का नित्य कृत्य था। गुरुजी के पीने के लिये नित्य एक तांबे का घड़ा क्षिप्रा से भरकर लाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त था। नित्य रात्रि को गुरुदेव के शयन करने पर चरणसेवा करते समय उनका जो स्नेहाशीर्वाद मिलता था वही मेरे जीवन-निर्माण का मूल कारण है। अब गुरु-शिष्य परम्परा समाप्त होती जा रही है। साथ ही रहस्यविद्या भी लुप्त हो रही है। यह परिताप का विषय है। अस्तु!
गणित-ज्यौतिष में तो पर्याप्त अन्वेषण एवं अनुसन्धान हो रहा है, परन्तु फल-ज्यौतिष में नवीन अनुसन्धान, अन्वेषण नहीं हो रहे हैं। अमेरिका, इंगलैण्ड, जर्मनी आदि देशों में अब फल-ज्यौतिष पर भी अनुसन्धान होने लगा है और कुछ ग्रन्थ भी प्रकाशित हुए हैं। वार्षिक-मासिक राशिफल भी अंग्रेजी में छपने लगे लगे है। भारत में भी राष्ट्रभाषा हिन्दी एवं मराठी, गुजराती, बंगला, कन्नड़, तमिल आदि में फल-ज्यौतिष, अंकशास्त्र और सामुद्रिक शास्त्र पर छोटे-बड़े ग्रन्थ निकलने लगे हैं। यह प्रसन्नता का विषय है। इसी श्रृंखला में यह ‘सुगम फलित ज्योतिष’ नामक पुस्तक हिन्दी भाषा में लिखी गयी हैं। इसके लेखक डॉ० विष्णुकान्त शर्मा, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर में वनस्पतिशास्त्र के सह आचार्य पद पर कार्यरत हैं। फल ज्योतिष में इनकी विशेष अभिरुचि है। इनके लगभग दो दर्जन लेख हिन्दी-अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित हो चुके हैं। इन्होंने हिन्दी-अंग्रेजी व संस्कृत ग्रन्थों का गहन अध्ययन-मनन करके हिन्दी भाषा में यह ग्रन्थ लिखा है जो ज्यौतिष में रुचि रखने वालों के लिये विशेष उपयोगी सिद्ध होगा ।
इस ग्रन्थ में १२ अध्याय निश्न क्रमानुसार रखे गये हैं- १. राशि-परिचयाध्याय, २. ग्रह-विचाराध्याय, ३. भाव-विचाराध्याय, ४. प्रत्येक लग्न के लिये शुभाशुभ फलाध्याय, ५. राशिस्थग्रह फलाध्याय, ६. भावस्थग्रह फलाध्याय, ७. भावफलादेश सम्बन्धी संकेताध्याय, ८. भावेशफलाध्याय, ९. श्रीकुण्डली-विचाराध्याय, १०. विशिष्ट योगाध्याय, ११. विगोत्तरी दशाफलाध्याय, १२. गोचरफलाध्याय ।
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