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Uddameshwar Tantram (उड्डामरेश्वरतन्त्रम्)

70.00

Author Ajay Kumar Uttam
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 2008
ISBN 81-87415-76-2
Pages 154
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0031
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Description

उड्डामेश्वरतन्त्रम् (Uddameshwar Tantram) तन्त्रविद्या भारत की अत्यन्त ही प्राचीन विद्या है। इस विद्या का सम्बन्ध प्राचीन वेद अथर्ववेद से है। यह विद्या अबर्ववेद से ही प्रकट हुई है और उसी से पुष्पित-पल्लवित हुई है। इस तन्त्रविद्या में अनादिकाल से ही निरन्तर शोध एवं अनुसंधान होते रहे हैं और आज भी हो रहे हैं। अन्तर केवल इतमा ही है कि प्राचीन काल के शोधग्रन्थ हमें आज प्राप्त हो जाते हैं, किन्तु आज जो अनुसंधान हो रहे हैं, वह अत्यन्त ही गोपनीय स्थानों एवं हिमालय जैसे अतिदुर्गम स्थानों में हो रहे हैं और इस अनुसंधान का लाभ जनसाधारण को प्राप्त होना अभी सम्भव नहीं हो पा रहा है।

प्राचीन काल के हमारे ऋषि-मुनियों ने अपने जीवन को सुखी एवं सफल बनाने के लिए अनेक शोधपूर्ण ग्रन्थों की रचना की थी। जीवन के सभी पक्षों को सुखमय बनाने के लिए अनेक क्रियात्मक तन्त्रग्रन्थों की रचना हुई। उन्हीं तन्वग्रन्थों में यह उड्डामरेश्वर तन्त्र भी एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में तन्त्र की विशुद्ध क्रियाओं, यथा-मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, विद्वेषण, स्तम्भन, यक्षिणी-साधन, अदृश्यीकरण आदि की बड़ी ही विस्तृत एवं रोचक क्रियायें दी गयी हैं। इन क्रियाओं के अतिरिक्त देवी एवं देवताओं के अत्यन्त ही सुगम एवं सरल व प्रयोग-साध्य मन्त्र भी दिये गये हैं। इस तन्त्रग्रन्थ में औषधि प्रयोगों का अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। औषधियों के प्रयोग से भी तन्त्र के प्रयोग सम्पादित किये जाते है। इस प्रकार के ग्रन्थों में उड्डामरेश्वर तन्त्र का अपना एक विशिष्ट स्थान है। इस प्रकार के अन्य कुछ ग्रन्थ है- उड्डीशतन्व, दत्तात्रेयतन्व, आकाशभैरवकल्प, नित्यनाथकृत कामरत्नम्, गौरीकाञ्चालिका तन्त्र, सिद्धनागार्जुनकृत कक्षपुट एवं योगरत्नमाला, मातृकाभेदतन्त, रसार्णवकल्प, काकचण्डीश्वरकल्पतन्व, स्वर्णतन्वम्, हरमेखला, मृडानीतन्व। इनमें उड्डीशतन्व कई प्रकार के प्राप्त होते हैं और सभी लंकाधिपति रावणकृत बताये जाते हैं। इसी प्रकार कामरत्नम् नामक ग्रन्थ भी दो प्रकार के पाये जाते हैं। दोनों के रचयिता भिन्न-भित्र हैं।

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