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Ulajhe Prashna Sulajhe Uttar (उलझे प्रश्न सुलझे उत्तर)

Original price was: ₹100.00.Current price is: ₹90.00.

Author Dr. Suresh Chandra Mishr
Publisher Ranjan Publication
Language Hindi
Edition 1st edition, 2016
ISBN -
Pages 168
Cover Paper Back
Size 14 x 1 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code RP0054
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Description

उलझे प्रश्न सुलझे उत्तर (Ulajhe Prashna Sulajhe Uttar)

गिरिशं गुरुं च नत्वा विशयविषव्याधिव्याकुले शास्त्रे। क्रियते तत्त्वनिदानं निर्भान्तं सुरेशमिश्रेण।।

आज फलित ज्योतिष सुर्खियों का विषय है। किसी विषय क्ता अधिक प्रचलन हो जाने पर उत्पन्न होने वाली प्रायः सभी खामियां आज फलित क्षेत्र में भी पैर जमाने लगी हैं। ‘स्वाध्यायान्माप्रमदः’ के सिद्धान्त को भूलकर, थोड़े परिश्रम एवं चमत्कारकामना से रातों रात विज्ञ बनने की होड़ लगने से शास्त्र की हानि अवश्य हो रही है। पाण्डित्य एवं अगाधता के स्थान पर पल्लवग्राहिता को विशेष प्रश्रय मिलने लगा है।

रोजी-रोटी के साथ जुड़ना बुरी बात नहीं है, लेकिन जिस विषय के साथ ये दो रोग लग जाते हैं, उसमें प्रवेश पाने के लिए हड़कम्प मचना एवं अयोग्य व्यक्तियों का भी प्रवेश पा जाना सुलभ होने लगता है। अनेक अगले पिछले दरवाजे खुलने लगते हैं। यह स्थिति व्यक्तिगत हित साधनों वाली हो सकती है, लेकिन कुल मिलाकर कथमपि श्रेयस्कर नहीं हो सकती। यह केवल आज की ही बात नहीं है, 1500 से भी अधिक वर्ष पूर्व वराहमिहिर को ऐसे लोगों के लिए ही कहना पड़ा था-

कुहुकावेशपिहित कर्णोपश्रुतिहेतुभिः। कृतादेशो न सर्वत्र प्रष्टव्यो न स दैववित्।।

इसी कारण आज नूतन अनुसधानात्मक दृष्टिकोण का विकास आवश्यक है। यह हर्ष का विषय है कि आज प्रबुद्ध वर्ग भी फलित ज्योतिष को चाहकर अपना रहा है, अतः भविष्य उज्ज्वल प्रतीत होता है। अन्यथा ऐसा प्रतीत होने लगा था कि भगवान् ने भी वराहमिहिर व कल्याण वर्मा आदि के बाद अपने हाथों को धोकर पोंछ लिया था।

आज हजारों अकुशल चिकित्सक इलाज करके कमा खा रहे हैं लेकिन इससे समाज, विधिवत् उपाधिप्राप्त योग्य चिकित्सक का सम्मान करना नहीं भूलता। इसी तरह अशास्त्रवित् लोगों के बीच में प्रबुद्ध शास्त्रज्ञ सदैव मान्य रहेगा। छोटी मछलियां पानी में कितनी भी उछल कूद मचाएं वे मन्दराचल पर्वत के योगदान को कम नहीं कर सकतीं। शास्त्रसमुद्र से अमृत प्राप्त करने का भार सदैव मन्दराचल पर ही रहेगा।

किमेतेनायासो भवति विफलो मन्दरगिरेः।

आज भी बुद्धिमान् व शास्त्राभ्यासी लोग आजीवन विद्यार्थी बने रहने में ही गौरव का अनुभव करते हैं। जबकि विवृद्ध विकृत यशोलिप्सा वाले लोग शास्त्रैकदेश में ही प्रवेश पाकर मतवाले हो उठते हैं। वास्तव में जब तक प्राण है, तब तक तत्त्वान्वेषण व शास्त्र चिन्तन में लगे रहना चाहिए। हर बार गहरे पैठने से रत्न अवश्य हाथ आएंगे।

युक्तियुक्तं प्रगृह्णीयाद् बालादपि विचक्षणः।

ऐसे ही निर्मत्सर शास्त्रान्वेषकों के कर कमलों में प्रस्तुत रचना सविनय सर्पित है। आशा है कि इससे फलित क्षेत्र में कुछ नए विचार क्षितिज अवश्य दिखेंगे।

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