Uttar Bharatiya Mudrayen (गुप्तोत्तरकालीन उत्तर भारतीय मुद्राएँ) ६००-१२०० ई०
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Author | Dr. Omkara Nath Singh |
Publisher | Vishwavidyalay Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 1997 |
ISBN | 81-7124-174-3 |
Pages | 164 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VVP0144 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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गुप्तोत्तरकालीन उत्तर भारतीय मुद्राएँ (Uttar Bharatiya Mudrayen) प्राचीन भारतीय इतिहास में गुप्तोत्तर काल की मुद्राओं का क्रमिक एवं व्यवस्थित अध्ययन एक प्रमुख समस्या रही है। इस विषय पर अब तक जो कार्य हुए हैं उसमें एक साथ अध्ययन सामग्री उपलब्ध नहीं है। इस क्षेत्र में पहला प्रकाशन 1841 में एच० एच० विल्सन द्वारा किया गया जिसमें कुछ सिक्कों का उल्लेख है। कनिघम ने 1843 में ‘एंशिएन्ट क्वार्यस ऑफ कश्मीर’ नामक पुस्तक प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने कश्मीर राज्य के प्राचीन सिक्कों का उल्लेख किया है। एडवर्ड थामस ने प्रिसेप द्वारा लिखे गये निबन्धों का ‘प्रिसेपस एस्से’ नामक पुस्तक को सम्पादित कर उसे दो भागों में प्रकाशित किया जिसमें कुछ लेख इस युग की मुद्राओं पर भी है। उन्होंने 1871 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘क्रानिकल्स ऑफ दि पठान किग्स ऑफ देलही’ में राजपूत काल के कुछ सिक्कों को प्रकाशित किया किन्तु अधिकांश सिक्कों के परीक्षण एवं पहचान का कार्य इस समय तक नहीं हो पाया था। रैप्सन ने 1887 में ‘इण्डियन क्वायंस’ नामक पुस्तक प्रकाशित किया जिसमें पूर्व मध्यकालीन सिक्कों का संक्षिप्त विवरण है। वी० ए० स्मिथ ने ‘क्वायंस ऑफ एंशिएन्ट इण्डिया’ में भारतीय संग्रहालय जो कलकत्ता के मुद्राओं का विस्तृत विवरण दिया 1906 ई० में प्रकाशित हुई। इसी क्रम में जे० एलन की पुस्तक 1934 ई० में प्रकाशित हुई जिसमें शशांक एवं कुछ गुप्त अनुकारक सिक्कों का उल्लेख है।
अनन्त सदाशिव अल्तेकर ने 1957 में अपनी पुस्तक ‘दि क्वायंस ऑफ गुप्ता इम्पायर’ में गुप्त अनुकारक परवर्ती सिक्कों का विस्तृत विवरंण दिया है। 1966 में लल्लनजो गोपाल ने भारतीय मुद्रा परिषद के एक मोनोग्राफ ‘अर्ली मेडिवल क्वायंस टाइप ऑफ नार्दनं इण्डिया’ प्रकाशित किया जिसमें पूर्व मध्यकाल के उत्तर भारत के सिक्कों का अध्ययन किया गया है। परमेश्वरीलाल गुप्त ने अपनी पुस्तक ‘क्वायंस’ जिसका प्रकाशन 1969 में हुआ, में पूर्वमध्यकालीन सिक्कों पर एक संक्षिप्त परिचय है। इसी क्रम में 1980 में पी० सी० राय द्वारा ‘दि क्वायंस ऑफ नार्दर्न इण्डिया’ नामक पुस्तक का प्रकाशन किया गया जिसमें गंगाघाटी के राजपूत राजाओं के सिक्कों को अध्ययन का विषय बनाया गया है किन्तु उपर्युक्त विवेचित किसी भी पुस्तक में एक साथ संपूर्ण उत्तर भारत के सिक्कों के अध्ययन की पहल नहीं की गयी है। इन पुस्तकों के अतिरिक्त ‘जर्नल ऑफ न्यूमिस्मेटिक सोसायटी ऑफ इण्डिया’, ‘न्यूमिस्मेटिक सप्लिमेंट; जर्नल ऑफ रायल एसियाटिक सोसायटी’, ‘न्यूमिस्मेटिक क्रानिकल्स’, ‘इण्डियन न्यूमिस्मेटिक क्रानिकल’, ‘एसियाटिक सोसायटी’ एवं विविध संग्रहालयों से प्रकाशित होने वाले अध्ययन सामग्रियों में इस युग के मुद्राओं पर लेख प्रकाशित हुए है लेकिन विद्यार्थी या शोधकर्ता को एक साथ अब तक हुए कार्यों को जानकारी एक स्थान पर संभव नहीं हो पाती है। इसीलिए हमने गुप्तोत्तर उत्तर भारत के सभी राजवंशों यथा कश्मीर के राजवंश, पंजाब के हिन्दू षाहि राजवंश, मध्यभारत के कल्चुरि, गाहड़वाल, चंदेल, परमार, दिल्ली के तोमर, पश्चिमोत्तर भारत के चौहान शासकों के अतिरिक्त पूर्वी भारत के पाल, सेन के साथ हो पूर्वोत्तर भारत के राजवंशों के सिक्कों पर एक साथ अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराने का प्रयास किया है।
इसमें विवेचित सभी राजवंश 600 से 1200 ई० के बीच के हैं। इस पुस्तक में इस काल के संदर्भ में ‘मुद्राओं की कमी’ पर पूर्वपीठिका नामक प्रथम अध्याय में विशेष रूप से चर्चा की गयी है। इस पुस्तक में कुल सात अध्याय हैं। प्रथम अध्याय पूर्वपीठिका के रूप में है। द्वितीय अध्याय ‘गुप्त-मुद्राओं के अनुकरण’ है, इसमें पुष्यभूतिवंश, मौखरि राजवंश एवं बंगाल और असम से प्राप्त उन सिक्कों का अध्ययन है जिन पर गुप्त सिक्कों का प्रभाव स्पष्ट है। तीसरे अध्याय में भारतीय सासानी अथवा गधिया सिक्कों का उल्लेख किया गया है। चतुर्थ अध्याय के अन्तर्गत पाहि और उसके अनुकारक सिक्कों का उल्लेख है। पाँचवें अध्याय का सम्बन्ध मध्यभारत के राजपूत राजाओं के उन सिक्कों से है जिस पर लक्ष्मी, गजशार्दूल एवं हनुमान का अंकन है। छठे अध्याय में 600 से 1200 ई० के कश्मीर के सिक्कों का विवेचन है। सातवें अध्याय में उपसंहार शीर्षक के अन्तर्गत इस काल के सिक्कों पर संक्षिप्त निष्कर्ष प्रतिपादित किया गया है। इस पुस्तक में इन सभी सिक्कों के छायाचित्र भी दिये गये हैं। छायाचित्रों के साथ ही उपसंहार अध्याय में गुप्तोत्तर भारत के लगभग सभी राजवंश के शासकों के नाम और उसके जारी किये गये सिक्कों का एक समेकित चार्ट दिया गया है जिसे देखकर ज्ञात किया जा सकता है कि इस काल के राजाओं के द्वारा किस-किस धातु के सिक्के जारी किये गये थे।
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