Varnashram Vyavstha (वर्णाश्रम व्यवस्था)
Original price was: ₹125.00.₹110.00Current price is: ₹110.00.
Author | Dr. Prabhakar Sdashiv Pandit |
Publisher | Sharda Sanskrit Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2015 |
ISBN | 978-93-81999-48-6 |
Pages | 86 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 1 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SSS0076 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
वर्णाश्रम व्यवस्था (Varnashram Vyavstha) ग्रन्थ की भाषा शैली सर्वथा सुगम्य है, अल्पज्ञ पाठक भी अनायास इस पुस्तक के माध्यम से वर्णाश्रम के रहस्य को जान सकते है। यथार्थतः डॉ. पण्डित जी की पण्डिताई का यह एक छोटा सा नमूना है, पुस्तक में प्रत्येक कथन के लिये शास्त्र वाक्य संयुत है क्योंकि शास्त्रपूतं वदेद् वाक्यम्। इस पुस्तक की एक और विशेषता यह है कि सप्रमाण अपनी बात को प्रस्तुत करना जैसे कि भगवान् को वही प्राप्त कर सकता है जो हरि का भजे सो हरि का होई। यहाँ वर्णवाद नहीं है, भक्तिवाद है, यहाँ केवल भक्त और भगवान् हैं उनके मिलन की कोई वर्ग विशेष की भाषा या जाति नहीं है। यही जीवन का चरमोत्कर्ष भी है। अपने सम्पूर्ण जीवन के सत् कर्मों की कमाई का निचोड़ मात्र ‘भ’युगल में समरस हो जाना ही जीवन मात्र का लक्ष्य है।
वर्णाश्रम व्यवस्था अर्थात् वर्ण याने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तथा आश्रम याने ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और सन्यासाश्रम प्रदीर्घ काल से चर्चा का विषय रहे हैं। कभी आदर के साथ तो कभी तिरस्कार के साथ यह चर्चा होती रही है। महाराष्ट्र के सन्तश्रेष्ठ श्री ज्ञानेश्वरजी के जीवन से परिचित व्यक्ति यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि सन्यास श्रम और गृहस्थाश्रम के कटु विवाद की झंझा से उन्हें कैसे गुजरना पड़ा। यहाँ तक की ज्ञानेश्वरजी के माता-पिता को जलसमाधि लेनी पड़ी, समाज से बहिष्कृत होना पड़ा, लेकिन पिता जी द्वारा किए गए शिक्षा-संस्कारों के फल स्वरूप चारों भाइयों ने अर्थात् निवृत्ति नाथ, ज्ञानेश्वर, सोपान देव और बहन मुक्ता बाई ने व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास के साथ समाज सुधार में भी महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया। श्री ज्ञानेश्वरजी द्वारा रचित ज्ञानेश्वरी ग्रंथ आज विश्वसाहित्य की अनमोल धरोहर बना हुआ है। उनके द्वारा संरक्षित-संवर्धित ‘वारकरी सम्प्रदाय’ महाराष्ट्र का एक महत्त्वपूर्ण भक्ति-संस्कार-केन्द्र आजभी लाखों की संख्या में भक्ति रस में तल्लीन होकर पैदल आलँदी से पंढरपुर विठ्ठल भक्ति दर्शन में रस विभोर होता रहा है।
Reviews
There are no reviews yet.