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Varsha Yogavali (वर्षयोगवाली)

Original price was: ₹35.00.Current price is: ₹31.00.

Author Acharya Madhu Sudan Shastri
Publisher Chaukhamba Sanskrit Series Office
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition
ISBN -
Pages 144
Cover Paper Back
Size 12 x 2 x 18 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0052
Other KSS 5

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Description

वर्षयोगवाली (Varsha Yogavali) प्राणियों के शुभ अशुभ एवं शुभाशुभ फलों के शासन करने वाले शास्त्र के विषय में ज्योतिः, ज्योतिष एवं ज्योतिष इन तीन शब्दों का प्रयोग होता है। इनके प्रयोग का हेतु है प्रकृति या स्वभाव। जैसे शीत ऋतु में शीत का, वर्षा ऋतु में वर्षा का, ग्रीष्म ऋतु में आतप का और वसन्त ऋतु में मलयसमीर का मलयानिल का प्रभाव जागतिक भौतिक जड़ पदार्थों पर एवं अजड़ चेतन प्राणियों पर पड़ता है। उसी तरह शीत, वर्षा, आतप एवं वायु के प्रभाव की तरह माता के गर्भ से निकल कर पृथिवी पर गिरने वाले बच्चे के साथ आकाशीय नक्षत्रादि ग्रहों का मेपादि राशियों का सम्वन्ध होता है। उनका प्रभाव उस पर पड़ता है। जैसे टार्च का प्रकाश क्रमशः समीप वाली वस्तुओं पर अधिक पड़ता है और क्रमशः दूर होने वाले पदार्थों पर अल्प पड़ता है इसी तरह आकाशीय इन ज्यौतियों का अंशों के विभाग से अधिक एवम् अल्प सम्बन्ध के जनुसार समीप और दूर में पड़ता है।

जिसके कारण ज्योतिः शास्त्र के विद्वान् लोग मानवों के जीवन में उन्नति अवनति एवं साधारण स्थिति को बतलाते हैं। तथा शुभ अशुभ एवं शुभाशुभ ग्रहों के आधार पर शुभ अशुभ एवं शुभाशुभ फलों को महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, विदशा एवं उपदशाओं के माध्यम से बतलाते हैं। ग्रहों की परस्पर की युति तथा दृष्टि के बल पर एवं केन्द्र पणकर आयोक्लिम में उनकी स्थिति के आधार पर उक्त प्रकार के फलों को कहते हैं।

बच्चे के पैदा होने समय ही इष्टसमय है इष्टकाल है। इस इष्टकाल में रवि के मार्ग का जो बिन्दु क्षितिज पर रहता है लगता है वही लगा हुआ बिन्दु उस समय का लग्न है यानी लग्न के नाम से उसकी ज्यौतिषियों में प्रसिद्धि है। इस जन्म सामयिक ज्ञान के बल पर जैसे प्राणियों के जीवनपर्यन्त का फलादेश दैवज्ञ कहते हैं उसी प्रकार वर्षारम्भ के समय के लग्न के आधार पर वर्ष भर का फल कहते हैं। महीने के आरम्भ के समय के लग्न के बल पर महीने भर का फल कहते हैं और दिन के शुरु होने के समय के लग्न के सहारे दिन का फल कहते हैं। यह सिद्धान्त महर्षियों ने अपने-अपने अनुभव से बताया है। उसी के आधार पर आधुनिक काल के ज्यौतिषी भी भिन्न-भिन्न फलों को कहते हैं।

प्रकृत में वर्ष के आरम्भ के समय के लग्न के बल पर फल को कहने के लिए हमारे स्व० पूज्यपिताजी श्रीरामजी लालजी दैवज्ञ शिरोमणि ने भिन्न आचार्यों के प्रतिपादित ग्रन्थों से संग्रह करके वर्षयोगावली नामक ग्रन्थ बनाया। उसमें बतलाये हुए कष्टों के निवारण के उपाय के लिए प्राचीनों के ग्रह-शान्ति-प्रद स्तोत्र एवं मंत्रों का भी संग्रह कर दिया है।

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