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Vishwakarma Puran (विश्वकर्मा पुराण) – 36

Original price was: ₹350.00.Current price is: ₹280.00.

Author Shiv Jeet Singh
Publisher Rupesh Thakur Prashad Prakashan
Language Hindi
Edition 1st edition, 2009
ISBN 036-542-2392547
Pages 264
Cover Hard Cover
Size 18 x 2 x 26 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0076
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Description

विश्वकर्मा पुराण (Vishwakarma Puran) आज के कलिकाल में समस्त भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी शिल्पकार प्रभु विश्वकर्माजी के अनेकों भक्त श्रीविश्वकर्माजी के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिये हमेशा उत्सुक रहते हैं। सम्पूर्ण कलाओं एवं शिल्पविद्या के सृजनकर्ता प्रभु श्रीविश्वकर्मा के महापुराण को पढ़ने से उन्हें पूर्ण सन्तुष्टि मिलेगी। महर्षि अंगिरा के वंश में आदि शिल्पाचार्य भगवान् विश्वकर्मा हुए हैं। विश्वकर्माजी का नाम विश्वकृत भी है, जिसका अर्थ सृष्टिकर्ता अथवा विश्वरूपी कर्म को करने वाला होता है। यह नाम परब्रह्म परमात्मा पर घटित होता है, जो कि सृष्टि (सृजन) स्थित एवं लय के कारण हैं। परमात्मा के नाम तथा रूप अनन्त है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र, वरुण, कुबेर आदि सभी देव उन्हीं के स्वरूप हैं। उनके नाम उनके अपने-अपने कार्य शक्ति के अनुरूप पड़े हैं।

महर्षि अंगिरा वंश के सम्बन्ध में यह कथा प्रसिद्ध है कि स्वयंभू ब्रह्मा के सात मानस पुत्र हुए। इन्हें शास्त्रों में सप्तर्षि के नाम से जाना जाता है। इनके नाम है-१. मरीचि, २. अंगिरा, ३. पुलह, ४ ऋतु, ५. वशिष्ठ, ६. पुलस्त्य और ७. अत्रि। ये सातों वेदाचार्य थे। इन्होंने वेद धर्म का प्रचार कर इस सृष्टि का विस्तार किया। इससे स्पष्ट है कि भगवान् विश्वकर्मा अपने नाम के अनुरूप अपनी कार्यशक्ति विशेष से सम्पन्न होकर अवतरित हुए, इन्हें देवताओं का शिल्पी भी कहा जाता है। पुराणों में इनके निर्माणकारी शक्तियों का अनेकों वर्णन मिलता है। जैसे-भगवान् कृष्ण के लिये द्वारकापुरी का निर्माण, ऋषि दधीचि की अस्थियों से इन्द्र के लिये वज्र का निर्माण, युधिष्ठिर के लिये इन्द्रप्रस्थ का निर्माण। ऐसी अपरिमित कथाओं से विश्वकर्मा जी की अलौकिक शक्ति प्रतीत होती है। शिल्प कार्यों तथा वास्तु-कार्यों में इनके पूजन का विशेष महत्व होता है, इसी कारण से आज भी औद्योगिक क्षेत्रों में, कल-कारखानों में, मशीनरी से सम्बन्धित सभी संस्थानों में भगवान् विश्वकर्मा का पूजन कार्तिक मास में १७ सितम्बर को विधिपूर्वक धूमधाम से किया जाता है। इस पुस्तक में इनके पूजन विधि का सांगोपांग वर्णन है और श्रीविश्वकर्माजी के साथ ही उनके पाँच मानस पुत्रों तथा वास्तुदेव का भी विशद वर्णन है। प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशक महोदय भी विशेष धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने असंख्य हिन्दी-भाषा-भाषी प्रेमी पाठकों के लिए इस पुस्तक को प्रकाशित कर बहुत बड़ा उपकार किया है। आशा है, पाठकों के लिए यह पुस्तक विशेष उपयोगी सिद्ध होगी।

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