Vritta Ratnakar (वृत्तरत्नाकरः)
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Author | Dr. Brijkishor Tripathi |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2nd edition, 2008 |
ISBN | 81-87415-78-9 |
Pages | 208 |
Cover | Paper Back |
Size | 12 x 2 x 19 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0112 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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वृत्तरत्नाकरः (Vritta Ratnakar) पिङ्गलमुनि के परवर्ती काल में भी अनेक छन्दःशास्त्रकार हुए; जिनमें केदार भट्ट भी हैं। इनके द्वारा ‘वृत्तरत्नाकार’ की रचना की गयी है। वृत्तरत्नाकर में भी कई छन्दःशास्त्र के आचार्यों के नाम का उल्लेख मिलता है। जैसे-सैतव, काश्यप और राम। (“सैतवस्याखिलेष्वपि” वृ० अ २ श्लोक २६, सिंहोन्नतेयमुदिता मुनिकाश्यपेन। उद्धर्षिणीति गदिता मुनिकाश्यपेन। रामेण सेयमुदिता मधुमाधवीति ।। इत्यादि)। परन्तु इन आचार्यों के ग्रन्थों के नाम भी अभी तक उपलब्ध नहीं हुए। कालिदास का ‘श्रुतबोध’ ख्यातिप्राप्त ग्रन्थ है सही, पर इसमें बहुत थोड़े छन्दों का निरूपण है; अतः यह अधिक महत्त्व नहीं प्राप्त कर सका। गंगादास की ‘छन्दोमव्जरी’ छन्द का अच्छा ग्रन्थ है। परन्तु इसका भी अधिक प्रचार नहीं हो पाया। क्षेमेन्द्र का ‘सुवृत्ततिलक’ छन्दनिरूपण की अपेक्षा छन्दों की आलोचना विशेष करता है। इसलिए इसका भी अधिक प्रचार नहीं हुआ।
इसके अतिरिक्त और भी छन्द ग्रन्थ हैं। पर हैं प्रायः सब अप्रचलित। इन सब में ‘वृत्तरत्नाकर’ का ही वर्तमान काल में अधिक प्रचार है; क्योंकि वैदिक छन्दों में त्रिवर्ण मात्रा का अधिकार है, किन्तु लौकिक छन्दों में सभी का अधिकार होने से वैदिक छन्दों के निरूपण को छोड़कर ‘वृत्तरत्नाकर’ में केवल लौकिक छन्दों का निरूपणं किया गया है। ‘वृत्तरत्नाकर’ के अधिक प्रचलित होने में इसकी दो विशेषतायें कारण हैं। एक तो यह कि इसमें छन्द का लक्षण उसी छन्द में किया गया है। अर्थात् भुजङ्गप्रयात छन्द का लक्षण ‘भुजङ्गप्रयात’ छन्द में ही है, जैसे-“भुजगप्रयातं भवेद् यैश्चतुर्भिः”। तात्पर्य यह है कि लक्षण और उदाहरण एक ही रूप में बताया गया है। लक्षण को ही उदाहरण के रूप में दिया जा सकता है। स्वयं ग्रन्थकार ने अपने ग्रन्थ की इस विशेषता का उल्लेख किया है- “तेनेदं क्रियते छन्दो लक्ष्यलक्षणसंयुतम्” (वृ० अ० १ श्लोक ३)। इस शैली से लक्षण का उदाहरण में समन्वय सरल हो गया है। उदाहरण अन्यत्र ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं रही।
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