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Vyapti Panchakam (व्याप्तिपञ्चकम्)

127.00

Author Dr. Shivram Gangopadhyay
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit
Edition 1st edition, 2018
ISBN 978-93-81189-49-8
Pages 124
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0035
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Description

व्याप्तिपञ्चकम् (Vyapti Panchakam) नित्य विभु आत्मतत्त्व अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा के यथार्थ परिज्ञान ही दर्शन पद से अभिहित है, जागतिक पदाथों में आत्मा सर्वाधिक प्रिय होता है। जैसे- स होवाच-न वा अरे पत्युः कामाय पतिप्रियो भवति। आत्मनस्तु कामाय पतिः प्रियो भवति तथा च वित्तात् पुत्रः प्रियः, पुत्रात् पिण्डः, पिण्डात्तथेन्द्रियम् इन्द्रियेभ्यः परं प्राणः प्राणादात्मा परः प्रियः॥

आत्मत्तत्त्व के यथार्थ परिज्ञान न होने से दुःख को आत्यन्तिकनिवृत्ति तथा रेकान्तिक उच्छेद कदापि सम्भव नहीं है। जैसे तरति शोकमात्मवित्’ तमेव विदित्वाऽतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनायः आत्मसाक्षात्कार का प्रधान उपाय है योग, जो शास्त्रों में बताया गया है तं दुर्दर्श गूढमनुप्रविष्टं गुहाहितं गहरेकं पुराणम् अध्यात्मयोगा धिगमेन देवें मत्या धीरो हर्षशोकी जहाति इज्याचारदयाहिंसादानस्याध्यायकर्मणम अयं तु परमो धमों यद्योगेनात्मदर्शनम् दार्शनिकमतानुसार परमात्मा का साक्षात्कार ही दुःखविमोक्ष का प्रयोजक है। यथा-ज्ञात्वा तं मृत्युमत्वेति। ईश्वरानुग्रह ही मोक्षप्रयोजक तत्त्व है।

जैसे बताया गया है तच्चेश्वरचोदनाभिव्यक्ताधमदिव।स्वर्गापवर्गयोर्मार्गमामनन्ति मनीषिणः। यदुपास्तितमसावत्र परमात्मा निरूप्यते। ईश्वरप्रणिधानाद्वा। प्रणिधानाद् भक्तिविशेषाद् आवर्जित ईश्वरः तमनुगृह्णाति अभिध्यानमात्रेण, तदभिध्यानादपि योगिन आसन्नतमः समाधिलाभः फलं च भवति ईश्वरानुग्रहायेणा पुंसामद्वैतवासना महाभयकृतत्राणा द्वित्राणां यदि जायते। आत्मस्वरूप का प्रतिपादन तथा मोक्षोपयोगी तत्त्वों का यथार्थ विवरण ही दर्शनशास्त्र का मुख्य उद्देश्य है। वेदप्रामाण्यावादी तथा वेदाप्रामाण्यवादी अर्थात् आस्तिक तथा नास्ति के भेद से भारतीय दर्शन का विभाजन किया गया।

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