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Sanskrit Sahitya Ka Samikshatmak Itihas (संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास)

260.00

Author Dr. Kapil Dev Dwivedi
Publisher Ramnarayanlal Vijaykumar
Language Sanskrit &Hindi
Edition 2023
ISBN -
Pages 642
Cover Paper Back
Size 11 x 2.5 x 17 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0087
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Description

संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास (Sanskrit Sahitya Ka Samikshatmak Itihas) ‘संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास’ संस्कृत-प्रेमी छात्रों एवं विद्वज्जनों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करता हूँ। यद्यपि अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत तथा विश्व की विभिन्न भाषाओं में अनेक ग्रन्थ इस विषय पर उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और वैज्ञानिक दृष्टि से लिखे गए हैं। भारतीय विद्वानों के तुल्य ही पाश्चात्त्य विद्वानों का भी इस विषय में प्रशंसनीय योगदान रहा है।

यह प्रश्न स्वाभाविक है कि अनेक संस्कृत-साहित्य के इतिहास-ग्रन्थों के होते हुए भी इस ग्रन्थ की क्या आवश्यकता है? इस विषय में विनम्र निवेदन है कि प्रायः सभी इतिहास-ग्रन्थों को देखने से उनमें कुछ व्यावहारिक-न्यूनताएँ दृष्टिगोचर हुईं। छात्रों के लिए उपयोगिता की दृष्टि से कुछ इतिहास-ग्रन्थ आवश्यकता से अधिक विस्तृत हैं, तो कुछ अत्यन्त संक्षिप्त; कुछ में तथ्यों का स्पष्ट प्रतिपादन नहीं है तो कुछ में मूल-ग्रन्थों के अध्ययन का अभाव है; कुछ में वाग्जाल प्रधान है तो कुछ में नीरस तथ्यात्मकता का बाहुल्य है। प्रयत्न किया गया है कि इस इतिहास-ग्रन्थ में छात्रों के लिए उपयोगिता की दृष्टि से सभी संभव न्यूनताओं का निराकरण किया जा सके। मल्लिनाथ के शब्दों में यह भी प्रयास किया गया है कि ‘नामूलं लिख्यते किंचिद् नानपेक्षितमुच्यते’। यथासंभव यह भी ध्यान रखा गया है कि अनावश्यक विस्तार न हो।

प्रस्तुत ग्रन्थ की कतिपय विशेषताएँ ये हैं:- (१) यह इतिहास पूर्णतया समीक्षात्मक दृष्टि से लिखा गया है। (२) विभिन्न विवादास्पद विषयों पर प्रामाणिक और मौलिक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। (३) पाश्चात्त्य और पौरस्त्य विद्वानों की सभी भ्रान्त एवं निर्मूल धारणाओं का खण्डन किया गया है। (४) छात्रों के लिए उपादेयता को प्रमुखता दी गई है, (५) सभी नवीनतम अनुसन्धानों का उपयोग किया गया है। (६) वैदिक और लौकिक साहित्य का एकत्र संतुलित विवेचन प्रस्तुत किया गया है। (७) मूल ग्रन्थों के अनुशीलन द्वारा परंपरागत उद्धरणों के अतिरिक्त नए मनोरम उद्धरण विभिन्न स्थलों पर दिए गए हैं। (८) शोध-छात्रों की उपयोगिता को दृष्टि में रखते हुए आधुनिकतम लेखकों की कृतियों का समावेश किया गया है। (६) यथाशक्ति वर्ण्य विषय को सरल, सुबोध और ललित भाषा में प्रस्तुत किया गया है। (१०) विषय- वस्तु को सुग्राह्य बनाने के लिए उपशीर्षकों का उपयोग करते हुए उसे व्यवस्थित क्रम में उपस्थित किया गया है। इस इतिहास के लेखन में यद्यपि पाश्चात्त्य और पौरस्त्य विद्वानों के अनेक ग्रन्थों का उपयोग किया गया है, तथापि निम्न लिखित विद्वानों की कृतियों के लिए विशेष आभार-प्रदर्शन करना अपना परम कर्तव्य समझता हूँ :- (१) मैकडानल-कृत- ‘History of Sanskrit Literature’, (२) ए० बी० कीथ-कृत ‘History of Sanskrit Literature! और; ‘Sanskrit Drama’, (३) विन्टरनित्स-कृत ‘History of Indian Literature’ (भाग १-३), (४) वेबर-कृत ‘History of Indian Literature’, (५) दासगुप्त और डे-कृत ‘History of Sanskrit Literature’, (६) वी० वरदाचार्य-कृत ‘संस्कृत साहित्य का इतिहास’; (७) पं० बनदेव उपाध्याय-कृत ‘वैदिक साहित्य और संस्कृति’; ‘संस्कृत साहित्य का इतिहास’; (८) पाण्डेय तथा व्यास-कृत ‘संस्कृत साहित्य की रूपरेखा’; (६) डा० रामजी उपाध्याय-कृत ‘संस्कृत-साहित्य का श्रालोचनात्मक इतिहास’; (१०) डा० हरिदत्त शास्त्री-कृत ‘संस्कृत-काव्यकार’; (११) डा० भोलाशंकर व्यास-कृत ‘संस्कृत कवि-दर्शन’ । इनके अतिरिक्त उन सभी ग्रन्थकारों का आमार मानता हूँ, जिनकी कृतियों का यथास्थान उपयोग किया गया है। इनका विस्तृत विवरण परिशिष्ट (१) में दिया गया है।

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