Ratnavali Natika (रत्नावली नाटिका)
₹85.00
Author | Parmeshwar Deen Pandey |
Publisher | Chaukhamba Surbharti Prakashan |
Language | Sanskrit Text and Hindi Translation |
Edition | 2022 |
ISBN | - |
Pages | 214 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0741 |
Other | Dispatched in 3 days |
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रत्नावली नाटिका (Ratnavali Natika) यह चार अंकों की नाटिका है जिसका प्रधान रस शृङ्गार तथा नायक धीर-ललित है । इसमें प्रियदर्शिका के समान ही सिद्ध पुरुष की भविष्यवाणी के आधार पर मन्त्री यौगन्धरायण षड्यन्त्र से सिंहलेश्वर विक्रमबाहु की बन्या रत्त्नावली को वत्सराज उदयन के यहाँ मंगवा लेते हैं। और वह (रत्नावली) प्रच्छन्न रूप से सागरिका नाम से दासी बनकर अन्तःपुर में रहने लगती है। उसके रूप लावण्य से शंकित होकर रानी वासवदत्ता उसे सदा राजा उदयन से दूर रखने का प्रयास करती रहती है परन्तु राजा उदयन उसपर मुग्ध हो जाते हैं। ईर्ष्यावश रानी उसे कारावास में डाल देती है परन्तु उसके राजकुल में उत्पन्न होने, ममेर बहन रत्नावली होने तथा सिद्ध पुरुष की भविष्य वाणी कि ‘रत्नावली से विवाह करने वाला चक्रवर्ती सम्राट् होगा’ इन सब बातों के प्रकट होने पर स्वयं रानी वासवदत्ता वत्सराज को रत्नावली (सागरिका) से बिवाह करने की अनुमति दे देती है।
रत्नावली की विशेषता – कथावस्तु, घटना की गतिशीलता एवं अभिनेयता की दृष्टि से रत्नावली संस्कृत रूपकों में प्रमुख स्थान रखती है। इसका प्रधान रस श्वङ्गार तथा कौशिकी वृत्ति है। नाटिका का नायक धीरललित वत्सराज उदयन है तथा नायिका मुग्धानवानुरागवासवदत्ता (सागरिका) है। इसमें नाट्यशास्त्र के अङ्गों (सन्ध्यादि) का जमावेश तथा नियमों का पालन बड़े चातुर्य से किया गया है। इसकी कथा ‘बृहत्कथा’ से ली गई है। नाटिका की भाषा प्राकृत एवं संस्कृत दोनों ही व्याकरण सम्मत, सरल, विरह. समास युक्त तथा प्रसाद गुण-युक्त है। यद्यपि इसमें विलासमय प्रणय का चित्रण है तथापि सर्वत्र भारतीय मर्यादा का समुचित निर्वाह किया गया है।
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