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Dhyan Vigyan (ध्यान विज्ञान)

509.00

Author Osho
Publisher Divyansh Publications
Language Hindi
Edition 3rd edition, 2023
ISBN 978-93-80089-88-1
Pages 192
Cover Hard Cover
Size 14 x 3 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code DP0013
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Description

ध्यान विज्ञान (Dhyan Vigyan) ध्यान न तो ज्ञान है, क्योंकि कोई ग्रंथ पढ़ने से ध्यान नहीं उपलब्ध होता। और न ध्यान भक्ति है, क्योंकि गिड़गिड़ाने से और प्रार्थना करने से, नाचने से, कूदने से और संगीत में अपने को भुलाने से कोई ध्यान उपलब्ध नहीं होता। और न ही ध्यान मात्र कर्म है कि कोई कर्मठ हो, सेवा करे या कुछ करे, तो ध्यान उपलब्ध हो जाता है। ध्यान तो एक अलग बिंदु है, वह तो जीवन में साक्षीभाव को स्थापित करने से उपलब्ध होता है।

अगर कोई अपने कर्म के जीवन में साक्षीभाव को उपलब्ध हो जाए, जो भी करे, उसका साक्षी भी हो, तो कर्म ही धर्म का अंग हो जाएंगे। तब सेवा धर्म हो जाएगी। तब जो किया जा रहा है वह धर्म हो जाएगा। बोधपूर्वक करने में ही कर्म ध्यान का हिस्सा हो जाता है। प्रेम हम करते हैं। प्रेम अगर बोधपूर्वक न हो, तो वासना बन जाता है और मोह बन जाता है। प्रेम यदि बोधपूर्वक हो, तो प्रेम से बड़ी मुक्ति इस जगत में दूसरी नहीं है, प्रेम भक्ति हो जाता है। और भक्ति के लिए मंदिर जाने की जरूरत नहीं है। भक्ति के लिए प्रेम का ध्यानयुक्त होना जरूरी है।

अगर आप अपने बच्चे को अपनी पत्नी को, अपनी मां को, अपने मित्र को, किसी को भी प्रेम करते हैं, अगर वही प्रेम ध्यान से संयुक्त हो जाए, अगर उसी प्रेम के आप साक्षी हो जाएं, तो वही प्रेम भक्ति हो जाएगा। प्रेम जब बोधपूर्वक हो, तो भक्ति हो जाता है। प्रेम जब अबोधपूर्वक हो, तो मोह हो जाता है। ज्ञान जब बोधपूर्वक हो, तो मुक्त करने लगता है। और ज्ञान जब अंधा हो, मूर्च्छित हो, तो बांधने लगता है। वैसे ही अगर कोई विचारों को इकट्ठा करता रहे, शास्त्र पढ़ता रहे, व्याख्याएं पढ़ता रहे, विश्लेषण करता रहे, तर्क करता रहे और सोचे कि ज्ञान उपलब्ध हो गया, तो गलती में है। वैसे ज्ञान नहीं उपलब्ध होता, केवल ज्ञान का बोझ बढ़ जाता है।

वैसे मस्तिष्क में कोई चैतन्य का संचार नहीं होता, केवल उधार विचार संगृहीत हो जाते हैं। लेकिन अगर ज्ञान के बिंदु पर ध्यान का संयोग हो, साक्षी का संयोग हो, तो फिर विचार तो नहीं इकट्ठे होते, बल्कि विचार-शक्ति जाग्रत होना शुरू हो जाती है। तब फिर बाहर से तो शास्त्र नहीं पढ़ने होते, भीतर से सत्य का उदघाटन शुरू हो जाता है। मेरी दृष्टि में, ध्यान एकमात्र योग है। न तो कर्म कोई योग है, न भक्ति कोई योग है और न ज्ञान कोई योग है। ध्यान योग है। और आपकी प्रकृति कुछ भी हो, ध्यान के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है।

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