Satya Premi Harish Chandra (सत्यप्रेमी हरिशचन्द्र)
₹35.00
Author | - |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Hindi |
Edition | 14th edition |
ISBN | - |
Pages | 32 |
Cover | Paper Back |
Size | 19 x 1 x 27 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0089 |
Other | Code - 1794 |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
सत्यप्रेमी हरिशचन्द्र (Satya Premi Harish Chandra) परमात्मा ही सत्य है। वह नित्य एकरस और अविनाशी है। सत्यमें कभी परिवर्तन नहीं होता। संसारके इतिहासमें इसके अनेकों दृष्टान्त हैं और ऐसे दृष्टान्तोंमें सत्यनिष्ठ हरिश्चन्द्रका नाम प्रधानतासे लिया जा सकता है। त्रेतायुगकी बात है। उन दिनों अयोध्याके राजा इक्ष्वाकुवंशी हरिश्चन्द्र थे। वे सम्पूर्ण पृथ्वीके एकच्छत्र सम्राट् थे, धर्ममें उनकी सच्ची निष्ठा थी और उनकी कीर्ति तीनों लोकोंमें फैली हुई थी। सभीकी जुबानपर हरिश्चन्द्रका नाम था, सभी उनके सद्व्यवहार, दानशीलता और सत्यनिष्ठाका लोहा मानते थे। देवता उनपर प्रसन्न थे। उनके शासनकालमें प्रजा संतुष्ट थी, कभी अकाल नहीं पड़ता था। न कोई बीमार होता और न तो किसीकी अकालमृत्यु होती। सारी प्रजा भगवान्की उपासना करती थी और अपने-अपने धर्ममें तत्पर थी। सब धनी थे, शक्तिशाली थे, तपस्वी थे; परंतु अभिमान किसीमें नहीं था। राजा हरिश्चन्द्र सबको समान दृष्टिसे देखते थे, सबसे समान प्रेम करते। अनेकों यज्ञ-याग करते रहते। सबसे बड़ी बात उनमें यह थी कि वे सत्यसे कभी विचलित नहीं होते थे।
Reviews
There are no reviews yet.