Kiratarjuniyam Pratham Sarg (किरातार्जुनीयम् प्रथम सर्गः)
₹80.00
Author | Dr. Acharya Dhurandar Pandey |
Publisher | Bharatiya Vidya Sanskthan |
Language | Sanskrit - Hindi (Translation) |
Edition | 1st Edition 2021 |
ISBN | |
Pages | 146 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h ) |
Weight | |
Item Code | BVS0009 |
Other |
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किरातार्जुनीयम् प्रथम सर्गः (Kiratarjuniyam Pratham Sarg) किरातार्जुनीयं महाकाव्य के रचयिता महाकवि भारवि जिस प्रकार अलङ्कारों का वर्णन करने में निपुण हैं उसी प्रकार वे छन्दों का वर्णन करने में भी कुशल हैं। छन्दों का प्रयोग करेन का आपका ज्ञान नितान्त प्रौढ है। आपने अपने महाकाव्य में अनेक अप्रचलित एवं कठिन छन्दों का अत्यन्त कुशलतापूर्वक प्रयोग करके अपने अवर्णनीय शास्त्रीय ज्ञान का परिचय दिया है जो कि एक सच्चे अध्ययनशील ज्ञानार्जन के इच्छुक का कार्य होता है।
महाकवि भारवि ने जहाँ वंशस्थ, उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, द्रुतविलम्बित, पुष्पिताग्रा, मालिनी, प्रहर्षिणी आदि अप्रचलित छन्दों का प्रयोग किया है वहीं मत्तमयूर, औपच्छन्दसिक, अपरवक्त्रादि अप्रचलित छन्दों का भी प्रयोग किया है। विभिन्न प्रकार के इन छन्दों को देखने के बाद तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि महाकवि का कोई सर्वाधिक प्रिय छन्द है तो वह है वंशस्थ। क्योंकि आपने महाकाव्य का लगभग छठा भाग इसी वंशस्थ छन्द में निबद्ध किया है। महाकवि ने इसका सर्वाधिक प्रयोग प्रथम, चतुर्थ एवं चतुर्दश सर्गों में किया है।
महाकवि भारवि ने नियमानुसार सर्ग के अन्त में छन्दों का परिवर्तन निश्चय ही कर दिया है जो कि उनके छन्दोविषयक ज्ञान का परिचायक है। अनुलोम-विलोमरूप से समान स्वरूपवाले, एकाक्षरपाद, एकाक्षरपद्यवाले अतिकठिन छन्दों की विचित्र छटा महाकाव्य के पञ्चदश सर्ग में देखते ही बनती है। महाकवि का छन्दों के वर्णन के प्रसङ्ग में उनकी सोच तथा विचारशक्ति अद्भुत तथा प्रशंसनीय है। आपकी विशेषता रही है कि आप छन्दों का प्रयोग रसानुकूल ही करते हैं। आपने शृङ्गाररस के वर्णन करते समय पुष्पिताग्रा नामक छन्द का प्रयोग किया है जो कि वसन्त की पूर्णता में अपने नाम को सार्थक करता है। वीररस का वर्णन करते समय आपने वंशस्थ, उपेन्द्रवज्जा, इन्द्रवज्रा तथा उपजाति छन्दों का प्रयोग किया है जो कि किरातार्जुनीयम् के पात्रों का प्रतिनिधित्व करते हुए इन्द्र एवं उपेन्द्र के अमोघ अस्त्रों की भाँति अपने कर्मक्षेत्र में सुदृढ एवं अडिग रहने के सन्देश देने के परिचायक हैं।
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