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Laghu Jatak (लघुजातकः)
₹85.00
Author | Pt. Siyaram Shastri |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2018 |
ISBN | 978-93-81189-53-5 |
Pages | 148 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0083 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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लघुजातकः (Laghu Jatak) ज्योतिषशास्त्र वेदपुरुष के चक्षुःस्वरूप सिद्धान्त, संहिता एवं होरारूपी तीन स्कन्धों में विभक्त है। इसका क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। इसके विषय में वराहमिहिर ने स्पष्ट कहा है-
यदुपचितमन्यजन्मनि शुभाशुभम्।
तस्य कर्मणः प्राप्तिं व्यञ्जनमतिशास्त्रम्।
एतत्, तमसि द्रव्याणि दीप इव।।
प्रस्तुत ग्रन्थ लघुजातक के प्रणेता आदित्यदास के पुत्र दैवज्ञ वराहमिहिर हैं। इनका जन्म ४८७ ई० के आस-पास हुआ है। इनका निधन ५८७ ई० में हुआ था। ये उज्जैन के रहने वाले तथा विक्रम महाराज की सभा के शिरोमौर्य थे। इनकी रचना बृहत्संहिता, बृहज्जातक, लघुजातकम्, योगयात्रा, विवाहपटल तथा पञ्चसिद्धान्तिका है। वशिष्ठादि पाँच सिद्धान्तों के संग्रह के कारण इसका नाम पञ्चसिद्धान्तिका रखा गया। लघुजातक ग्रन्थ वृहज्जातक ग्रन्थ का सारभूत है। फलित के पाँच भेद होते हैं, जो इस प्रकार हैं- १. जातक, २. मुहूर्त, ३. ताजिक, ४. प्रश्न, ५. संहिता। मानव-जीवन से सम्बन्धित कथित सम्पूर्ण फल को जातक कहा जाता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में गर्भाधान से लेकर निधन पर्यन्त सम्पूर्ण फल का वर्णन किया गया है। वराहमिहिराचार्य के कथनानुसार-
होराशात्रं वृत्तैर्मया निबद्धं निरीक्ष्य शास्त्राणि।
यत्तस्याप्यार्याभिः सारमहं सम्प्रवक्ष्यामि।।
लघुजातकम् – प्रस्तुत ग्रन्थ में १६ अध्याय १८२ श्लोकों से युक्त है। यह ग्रन्थ लघुकाय होते हुए भी अत्यन्त उपयोगी है। कहा भी गया है- देखन में छोटन लगे, घाव करे गम्भीर। इस प्रकार से सुसंस्कृत पाठकों के लिए अत्यन्त ही समुपयुक्त यह ग्रन्थ सान्वय शब्दार्थ व्याख्या सञ्जीवनी टीका से युत है, जो अपना अनुपम विशिष्ट महत्त्व रखता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में सोदाहरण आधुनिक पद्धति का गणित किया गया है।
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