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Sankshipt Brahma Vaivarta Puran (संक्षिप्त ब्रह्मवैवर्तपुराण)

300.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Hindi
Edition 24th edition
ISBN -
Pages 800
Cover Hard Cover
Size 19 x 4 x 27 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0098
Other Code - 631

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Description

संक्षिप्त ब्रह्मवैवर्तपुराण (Sankshipt Brahma Vaivarta Puran) पुराण भारतकी सर्वोत्कृष्ट निधि हैं। प्राचीन कालसे ही भारतवर्षमें पुराणोंका बड़े आदरके साथ पठन, श्रवण, मनन और अनुशीलन होता आया है। भारतीय जनताके हृदयमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार तथा धर्मपरायणताको दृढ़तापूर्वक प्रतिष्ठित करनेका श्रेय पुराणोंको ही है। वेदादि शास्त्रोंके गूढ़तम तत्त्वों एवं रहस्योंको सरल, रोचक एवं मधुर आख्यान-शैलीमें सर्वसाधारणके लिये सुलभ (उपलब्ध) करा देना पुराणोंकी अपूर्व विशेषता है। इसीलिये पुराणोंको अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई है।

पुराणोंकी ऐसी महत्ता और उपयोगिताको ध्यानमें रखते हुए गीताप्रेसद्वारा ‘कल्याण’ के विशेषाङ्कोंके रूपमें समय-समयपर अनेक पुराणोंके सरल तथा सरस हिन्दी अनुवाद जनहितमें प्रकाशित किये जा चुके हैं। जिन्हें विद्वानों, विचारकोंसहित बहुसंख्यक ग्राहकों तथा प्रेमी पाठकोंद्वारा पर्याप्त समादर प्राप्त हुआ है। ‘संक्षिप्त ब्रह्मवैवर्तपुराणाङ्क’ प्रथम बार ‘कल्याण’ वर्ष ३७ (सन् १९६३ ई०) के विशेषाङ्क के रूप में प्रकाशित हुआ था। इसका (१,४१,००० का बृहत्) प्रथम संस्करण शीघ्र समाप्त हो जानेके पश्चात् इसके पुनर्मुद्रणके लिये प्रेमी पाठकोंद्वारा निरन्तर प्रेमाग्रह बना रहा। फलस्वरूप इसके कुछ पुनर्मुद्रित संस्करण भी बादमें प्रकाशित किये गये। इस निरन्तरताको बराबर बनाये रखनेके उद्देश्यसे अब यह ‘संक्षिप्त ब्रह्मवैवर्तपुराण’ ग्रन्थाकारमें आपकी सेवामें प्रस्तुत है।

‘ब्रह्मवैवर्तपुराण’ मुख्यतः वैष्णव पुराण है। इसके मुख्य प्रतिपाद्य देवता विष्णु-परमात्मा श्रीकृष्ण हैं। यह चार खण्डोंमें विभाजित है- ब्रह्मखण्ड, प्रकृतिखण्ड, गणपतिखण्ड तथा श्रीकृष्णजन्मखण्ड। ब्रह्मखण्डमें सबके बीजरूप परब्रह्म परमात्मा (श्रीकृष्ण) के तत्त्वका निरूपण है। प्रकृतिखण्डमें प्रकृतिस्वरूपा आद्याशक्ति (श्रीराधा) तथा उनके अंशसे उत्पन्न अन्यान्य देवियोंके शुभ चरित्रोंकी चर्चा है। गणपतिखण्डमें (परमात्मस्वरूप) श्रीगणेशजीके जन्म तथा चरित्र आदिसे सम्बन्धित कथाएँ हैं। श्रीकृष्णजन्मखण्डमें (परब्रह्म परमात्मारूप) श्रीकृष्णके अवतार तथा उनकी मनोरम लीलाओंका वर्णन है। सारांशतः इसमें भगवान् श्रीकृष्ण और उनकी अभिन्नस्वरूपा प्रकृति-ईश्वरी श्रीराधाकी सर्वप्रधानताके साथ गोलोक-लीला तथा अवतार-लीलाका विशद वर्णन है। इसके अतिरिक्त इसमें कुछ विशिष्ट ईश्वरकोटिके सर्वशक्तिमान् देवताओंकी एकरूपता, महिमा तथा उनकी साधना उपासनाका भी सुन्दर प्रतिपादन है। इसकी सभी कथाएँ अतीव रोचक, मधुर, ज्ञानप्रद और कल्याणकारी हैं। इसका अध्ययन साधनोपयोगी और सदैव कल्याणप्रद है। अतएव जिज्ञासुओं, साधकों एवं कल्याणकामी सभी महानुभावोंको इसके अध्ययन-अनुशीलनद्वारा अधिकाधिक रूपमें विशेष लाभ उठाना चाहिये।

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