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Saravali (सारावली)

220.00

Author Acharya Manish Kumar Pandey
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 2015
ISBN 978-93-8/1189-44-3
Pages 476
Cover Paper Back
Size 14 x 3 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0065
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Description

सारावली (Saravali) मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त समग्र जीवन के भविष्य का प्रतिपादक शास्त्र ‘जातक’ कहलाता है। मनुष्य की आयु में प्रत्येक नूतन वर्ष का समय ज्ञात कर तदनुसार वर्षगुण्डली का निर्माण कर वर्ष-पर्यन्त प्रत्येक दिन मासादि के फल को प्रतिपादित करने वाला शास्त्र ‘ताजिक’ अभिधान रखता है। जिसके द्वारा जातक के कथित संस्कारों के लिये शुभाशुभ समय का ज्ञान प्राप्त किया जाता है, वह ‘मुहूर्त ज्यौतिष’ के नाम से जाना जाता है। ग्रहस्थिति द्वारा अचानक प्राप्त शुभाशुभ फल का ज्ञापक शास्त्र ‘प्रश्नज्यौतिष’ कहलाता है। सूर्य-चन्द्र-राहु-बुध-गुरु-शुक्र-शनि-केतु का शुभाशुभ फल, सप्तर्षि-विचार, कूर्मचक्र, नक्षत्र, ग्रहयुद्ध, गर्भधारण, सन्ध्यालक्षण, दिग्दाह, उत्पात, वास्तु, विघ्न, ग्रहवर्ष, भूकम्प, उल्का, परिवेष, इन्द्रायुध, रजोलक्षण, वृक्षायुर्वेद, प्रासादलक्षण, गो-महिषादि जीवों की विविध चेष्टायें आदि भविष्य-ज्ञान के साथ सुन्दर भोजन-निर्माण के विविध प्रकार आदि विषयों का ज्ञान जिस शास्त्र के द्वारा प्राप्त होता है, वह शास्त्र ‘संहिता ज्यौतिष’ के नाम से जाना जाता है।

इस प्रकार फलित ज्यौतिष के उपर्युक्त अंगों का फलकयन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है और इन समस्त अंगों को सम्यक् प्रकार से जानने वाला दैवज्ञ ही तथ्यपरक फलकथन में समर्थ हो सकता है।उक्त पञ्चविभागात्मक फलित ज्यौतिष में जातकशास्त्रीय ग्रन्थों में ‘सारावली’ ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान पर विराजमान है। अपने नामानुरूप ही यह अन्य अपने प्रणयनकाल में प्रचलित एवं मान्यताप्राप्त फलित ग्रन्थों का सारस्वरूप है और यही कारण है कि इसे विशिष्ट स्थान प्रदान किया है।

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