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Annaprashan Sanskar (अन्नप्राशन संस्कार)

32.00

Author Dr. Kunj Bihari Sharma
Publisher Sampurnananad Sanskrit Vishwavidyalay
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition
ISBN 81-7270-062-8
Pages 42
Cover Paper Back
Size 14 x 1 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SSV0045
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Description

अन्नप्राशन संस्कार (Annaprashan Sanskar) यह संस्कार बालक को तेजस्वी बनाता है। कहा भी गया है – “घृतौदनं तेजस्कामः”, अर्थात् जिस बालक को तेजस्वी बनाना हो, उसे प्राशनकाल में घृतयुक्त भात खिलावें, और भी कहा है- ‘दधिमधुघृत – मिश्रितमन्नं प्राशयेत्’। दही, शहद और घृत तीनों भात के साथ खिलाकर अन्नप्राशन करे। आयुर्वेद में चावल के गुण हैं – बलकारक, त्रिदोषनाशक, नेत्र-हितकारक और मूत्र-नियंत्रक। बालक के दाँत छठें महीने में निकलने लगते हैं तथा अनप्राशन का भी समय जन्म से छठें महीने में ही है। वैद्यशिरोमणि सुश्रुत के अनुसार ‘षण्मासं चैनमन्त्रं प्राशयेल्लघु हितं च’, अर्थात् छठवें महीने में बालक को थोड़ा और हितकर अन्न खिलाना चाहिए। इससे बालक स्वस्थ और दीर्घजीवी होता है। इस प्रकार अन्नप्राशन में बालक की उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए पारस्करगृह्यसूत्र के अनुसार विभिन्न प्रकार के प्राशन के विधान बतलाये गये है।

अन्नप्राशन का समय यह जन्म के छठें मास में होता है। बालकों का अन्नप्राशन सम ६,८,१०,१२ मासों में और कन्याओं का विषम ५,७,९,११ मास में होता है।

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