Yakshini Sadhana Tantram (यक्षिणीसाधनातन्त्रम्)
₹40.00
Author | Uddhav Prasad Uttam |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2005 |
ISBN | 81-87415-65-7 |
Pages | 110 |
Cover | Paper Back |
Size | 12 x 1 x 18 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0190 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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यक्षिणीसाधनातन्त्रम् (Yakshini Sadhana Tantram) तान्त्रिक वाड्मय का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रयोग-परक ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ प्राचीन भारत की तान्त्रिक विद्या में हुये अनुसन्धानों एवं साधना विधियों को प्रदर्शित करता है। प्राचीन भारत के ऋषियों एवं तपस्वियों ने अनेक ऐसी विधियाँ खोज निकाली थी जिसके द्वारा वे इस लोक के प्राणियों से ही नहीं अपितु अन्य लोक के प्राणियों से भी सम्पर्क रखने में सक्षम थे। इन लोकों में यक्षलोक, गन्धर्वलोक, नागलोक आदि थे। भारतीय ऋषि इन लोकों के ज्ञान- विज्ञान से पूर्णतया परिचित थे तथा उससे लाभान्वित भी होते रहते थे। यही उनकी सम्पन्नता और उन्नति का मूल कारण था। कालान्तर में इस विद्या के ज्ञान में कमी आयी और लोग भक्तिमार्ग का अनुसरण करने लगे। साधना करने में उनका मन न लगने लगा। कुछ साधक ऐसे भी हुये जो तन्त्र के नाम पर व्यभिचार का पोषण करने लगे। कई ऋषि ऐसे भी थे जो इन साधनाओं में पारंगत थे किन्तु उनको योग्य शिष्य नहीं मिले। परिणामस्वरूप यक्षिणी एवं अप्सराओं की साधना को लोग भय एवं शंका की दृष्टि से देखने लगे। इस कारण इस महान विद्या का और भी ह्रास होता गया। यद्यपि अनेक साधक आज भी ऐसे हैं जो इस महान विद्या को जीवित रखे हुये हैं। इस प्रकार के साधक खेचरी सिद्धि, स्वर्णसिद्धि, जलगमन सिद्धि आदि के महान ज्ञाता है। ऐसे साधक अपने आपको समाज से छिपाये हुए हैं अथवा हिमालय की दुर्गम कन्दराओं में निवास करते हैं। वर्तमान समय में भी हिमालय की दुर्गम कन्दराओं में इस प्रकार के योगी देखे जा सकते हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रथम पटल में यक्षिणी साधना की विधि मन्त्रों सहित दी गयी है। द्वितीय पटल में अप्सराओं की साधना विधि दी गयी है। इस ग्रन्थ के तृतीय पटल में अष्टकिन्नरी साधना का वर्णन किया गया है तथा ग्रन्थ के चौथे एवं अन्तिम पटल में अष्ट कात्यायनी साधना का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन एवं अनुवाद का कार्य मैंने अपनी समय, के अनुसार किया। ग्रन्थ में यथासम्भव त्रुटियां नहीं रहने दी गयी हैं। यदि भूल वश त्रुटियां रह गयी हो तो पाठक गण उन्हें क्षमा करें।
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