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Shat Vama Tantrani (षट्वामतन्त्राणी)

425.00

Author Dr. Ramchandra Puri
Publisher Chaukhamba Sanskrit Pratisthan
Language Sanskrit Text and Hindi Translation
Edition 2015
ISBN -
Pages 415
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0859
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Description

षट् वामतन्त्राणी (Shat Vama Tantrani) प्रस्तुत ‘षट् वामतन्त्राणि’ छः वाममार्गीय ग्रन्थों का संकलन है। इनमें अन्तिम ‘सर्वविजयतन्त्रम्’ का सम्बन्ध सीधे तौर पर तान्त्रिक साधनाओं से नहीं हैं। किन्तु, यह तान्त्रिक साधनाओं के अभिन्न और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग शरीर-साधना से सम्बन्धित होने से महत्त्वपूर्ण है। शेष पाँच कामाख्यातन्त्रम्, मायातन्त्रम्, गुप्तसाधनतन्त्रम्, चीनाचारक्रमतन्त्रम् और तारातन्त्रम् में क्रमशः कामाख्या, दक्षिणाकाली, धनदा, माया अर्थात् दुर्गा तथा तारा के विभिन्न स्वरूपों से सम्बन्धित विभिन्न साधनाओं का विवरण निर्देशन है।

यद्यपि शत-सहस्त्र देवियों में अपवाद रूप में एकाध को छोड़कर सभी वाममार्गाधिष्ठात्री शक्तियाँ है, किन्तु काली, कामाख्या, तारा, बगला आदि देवियाँ तो बिना वामसाधना के पूजी ही नहीं जा सकतीं। वाममार्गीय साधना में अनिवार्य रूप से मत्स्य, मांस, मदिरा, मुद्रा तथा मैथुन के उपयोग का विधान किया गया है। लेकिन, इस अनिवार्यता को जातीय, पारिवारिक, सामाजिक, प्रादेशिक, धार्मिक और आध्यात्मिक आदि पूर्व संस्कारों के कारण निषिद्ध घोषित कर इनके स्थान पर वैकल्पिक अनुकल्पों का भी उल्लेख करके वाममार्गीय साधना के विशुद्ध स्वरूप को आविल करने का भी प्रयास किया गया है और वह भी इन्हीं वाममार्गीय ग्रन्थों में प्रक्षेप करके।

तथाकथित विशुद्ध दक्षिणमार्गीय साधना के लिए असंख्य देवियाँ हैं और वे सरलता से अपने साधनों की आकांक्षाओं की पूर्ति कर सकती हैं, फिर ऐसे साधकों द्वारा वाममार्गीय साधना के अनाविल स्वरूप को बदलने का अवैध और अनुचित प्रयास क्यों ?

वाममार्गीय साधना घृणा, भय तथा लज्जादि पूर्व संस्कारों से जकड़े पशुसाधकों के लिए नहीं है। ये संस्कार साधना के विकास में बाधक है और उसे सामान्य मानवीय धरातल में बाँध रखने के पाश है। जीव और शिव में अन्तर जीव की पाशबद्धता ही है-

‘घृणा शङ्का भयं लज्जा जुगुप्सा चेति पंचमी।
कुलं शीलं तथा शक्तिरष्टौ पाशाः प्रकीर्तिताः।।
पाशबद्धः पशुः प्रोक्तः पाशमुक्तः सदाशिवः’।। (मेरुतन्त्रे)

वाममार्गीय साधना मानव को सामान्य मानवीय घरातल से उठाकर देवत्व तक पहुँचने की साधना है। यदि आप अपने ब्राह्मणत्व के मिथ्या अभिमान को नहीं छोड़ सकते, आप में जातीय घेरे और पूर्वार्जित अन्य संस्कारों से परे जाने की आकांक्षा और व्याकुलता नहीं है, तो कृपया वामसाधना से दूर ही रहें।

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