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Karma Vipak Samhita (कर्मविपाक संहिता)

180.00

Author Pt. Shyam Sunderlal Tripathi
Publisher Khemraj Sri Krishna Das Prakashan, Bombay
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2019
ISBN -
Pages 222
Cover Paper Back
Size 14 x 1 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code KH0074
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Description

कर्मविपाक संहिता (Karma Vipak Samhita) ब्रह्मादि तृणपिपीलिकान्त जीवसृष्टि; लता, गुल्म, गिरि, नदी आदि स्थावर सृष्टि सदा जीवों के कर्मानुसार हुआ ही करती है। इस सृष्टि को अनादि माना है। यह युगों के अनुसार अपने नियम से चलती है, वेद में ‘धाता यथापूर्वमकल्पयत्’ यह वाक्य ही इस बात की पुष्टि करता है कि, एक प्रलय के पीछे जब सृष्टि होती है तो पहिले के अनुसार ही पाञ्चभौतिक सृष्टि होती है। भगवान् श्रीकृष्ण गीता में स्पष्ट इसी बात को कह गये है-‘कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके’ कि सब जीव अपने अपने कर्मों के अनुसार संसार में जन्म ग्रहण करते हैं। इसमें कुछ भी संशय नहीं है कि, सृष्टि के पदार्थ असंख्य हैं उन सबों में जीवों के कर्म अनुगत है अर्थात् जीव अपने उत्तम कर्मों से मनुष्य देव गंधर्वादि उत्तम उत्तम जातियों में भी उत्पन्न होते हैं और निन्द्य कर्मों से पशु पक्षी कृमि वृक्ष लतादि हीन हीन जातियों में भी उसके अनुसार ही सुख-दुःख आदि का भोग करते हैं। अनादि और अनन्त कर्म होने से यह संसार सदा हुआ ही करता है। भगवान् श्रीशंकराचार्य ने इससे कहा है कि-‘पुनरपि उननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननी जठरे शयनम्’ इत्यादि। यह प्रत्यक्ष भी देखा जाता है कि, एक ही समय में राजा तथा रंक के पुत्र उत्पन्न होते हैं।

उनमें राजा अनेक सुखों को भोगता है रक दुःख सहने को ही उत्पन्न होता है। विद्वान्, मूर्ख, सती, कुलटा, दयालु, क्रूर इत्यादि एक ही समय में जन्म लेने पर भी अपने अपने कर्मों के अनुसार भिन्न भिन्न स्वभाव वाले होते हैं। इस वैषम्य को देखकर सभी मुक्तकण्ठ होकर कर्मों की प्रधानता स्वीकार करते हैं। बल्कि संचित क्रियमाण और भविष्य कर्मों का ऐसा जाल है कि जीव उनके चक्र में से निकल ही नहीं सकता। इसी से गीता में श्रीकृष्णपरमात्मा ने कहा है- ‘गहना कर्मणो गतिः’ जो कुछ हो, पर भगवान् महेश्वर और पार्वतीजी जीवों के निस्तार के लिये नाना प्रकार के प्रायश्चित्त संचित कर्मों के नाश के लिये बता गये हैं, उन्हीं का वर्णन अश्विन्यादि नक्षत्रों के प्रत्येक चरण में जन्म होने के अनुसार इस कर्मविपाक ग्रन्थ में लिखा हुआ है, प्रबलकर्म दुर्बल सर्व कर्म को दूर कर सकता है, अतएव प्रायश्चित्त से पूर्वपापों का नाश हो जाना मुनिसम्मत है। यद्यपि भृगुसंहिता तथा ज्योतिष के निर्यालाध्याय से पूर्वापर कर्मों का वृत्तान्त विदित हो सकता है परन्तु उनका ठीक ठीक ज्ञान होना कठिन है। इस कर्मविपाकसंहितासे बड़ी सुगमताले लोग अपना पूर्वजन्म का वृत्तान्त जान सकते हैं और विधिपूर्वक प्रायश्चित्त करने से अपने मनोरथों को सिद्ध कर सकते हैं। उस पर भी हमने मुरादाबाद निवासी पंडित श्यामसुन्दरलाल त्रिपाठीजी से इसकी हिन्दीटीका बनवाई है जिससे अब यह ग्रन्थ विद्वान्, साधारण ज्ञानवाले तथा नागरी वर्णमात्र जानने वालों तक का भी उपयोगी हो गया है। प्रायश्चित्त की विधि तथा अपने पूर्वजन्म के कर्मों के जानने के लिये क्या करना चाहिये कैसे विद्वान् (ज्योतिषी) के पास जाकर पूर्वजन्म का वृत्तान्त पूछना चाहिये, यह सब इस ग्रन्थ के आदि में लिखा हुआ है। मनुष्यों को चाहिये कि विधिपूर्वक प्रायश्चित्त करें तथा करावे जिससे शीघ्र लाभ हो।। इति ।।

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