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Saryuparin Brahman Gotravali (सरयूपारीण ब्राह्मण गोत्रवली)

10.00

Author Pt. Dwarka Prashad Shastri
Publisher Chaukhamba Krishnadas Academy
Language Hindi
Edition 1st, edition
ISBN -
Pages 16
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0417
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Description

सरयूपारीण ब्राह्मण गोत्रवली (Saryuparin Brahman Gotravali) सरयूपार भू-भाग की सीमा दक्षिण में सरयू नदी, उत्तर में सारन और चम्पारन का कुछ भाग, पश्चिम में मनोरमा या रामरेखा नदी, पूर्व में गंगा और गंडक (शालिग्रामी) नदी का संगम है। इस सरयूपार क्षेत्र की लम्बाई पूर्व से पश्चिम तक सौ कोस के लगभग है। उत्तर से दक्षिण तक पचास कोस से कुछ अधिक है। इस क्षेत्र को ‘सरवार’ कहते हैं। कुछ विद्वान इसकी सीमा अयोध्या से हरिहर क्षेत्र तक मानते हैं।

सरयूपारीण ब्राह्मण इस क्षेत्र के अन्तर्गत ब्राह्मणों का जो पर्व बसा हुआ है उसको ‘सरवरिया’ या सरयूपारीण ब्राह्मण कहते हैं। इस ब्राह्मण वर्ग में उपाध्याय, ओझा, चतुर्वेदी, त्रिपाठी, द्विवेदी, पाठक, पाण्डेय, मिश्र और शुक्ल ब्राह्मण हैं। उनको व्यवहार में उपाध्या, ओझा, चौबे, तिवारी, दुबे, पाठक, पाड़े, मिसिर और सुकुल भी कहते हैं। यह ब्राह्मण वर्ग स्वतन्त्र है। वह ब्राह्मण वर्ग यहाँ का मूल निवासी है। इसके पूर्वज कान्यकुब्ज आदि अन्य ब्राह्मण नहीं थे।

आस्पद वे ब्राह्मण सरवार में जिन गाँवों में बसे हुए हैं इनको आस्पद (स्थान) कहते हैं। आप कौन आस्पद हैं? ऐसा पूछने पर वे ब्राह्मण उस स्थान के साथ अपने ब्राह्मण वश का नाम जोड़ कर परिचय देते हैं। जैसे मामखोर के शुक्ल, पयासी के मिश्र आदि।

गोत्र आदि प्रत्येक ब्राह्मण किसी एक ऋषि की सन्तान परम्परा में आता है। वह ऋषि गोत्रकार ऋषि होता है। उस ऋषि का नाम ही ब्राह्मण का गोत्र होता है। जैसे, मामखोर के शुक्ल गर्ग गोत्र, पयासी के मिश्र वत्स गोत्र आदि। गोत्र के साथ ही उस गोत्र का प्रवर होता है। प्रवर किसी गोत्र का तीन और किसी गोत्र का पाँच होता है। इससे गोत्र की पीढ़ियों का ज्ञान होता है। गोत्र की जानकारी रखना इसलिए आवश्यक होता है कि प्रत्येक शुभ और अशुभ कार्य में संकल्प वाक्य में इसको शामिल करके पढ़ा जाता है। जैसे गर्ग गोत्रोत्पन्नो अमुक नाम आदि।

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