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Panchang Pujan Paddhati (पंचांग पूजन पद्धति)

20.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Sanskrit & Hindi
Edition 6th edition
ISBN -
Pages 112
Cover Paper Back
Size 21 x 1 x 14 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0045
Other Code - 2228

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Description

पंचांग पूजन पद्धति (Panchang Pujan Paddhati) सामान्य रूपसे पंचांग-पूजनके अन्तर्गत स्वस्तिवाचन-शान्तिपाठ, गणेशाम्बिकापूजन, कलशस्थापन, पुण्याहवाचन, षोडशमातृकापूजन, सप्तघृतमातृकापूजन (वसोर्धारा), रक्षाविधान एवं आयुष्यमन्त्रपाठ, नवग्रहमण्डलपूजन, नान्दीमुखश्राद्ध तथा ब्राह्मणवरण समाहित हैं। आरम्भमें मंगलाचरणकी दृष्टिसे स्वस्तिवाचन शान्तिपाठ किया जाता है। सम्पूर्ण कर्मकी निर्विघ्न सम्पन्नताके लिये गणेश तथा अम्बिकाका पूजन होता है। कलश स्थापित करके उसमें वरुण आदि देवोंका आवाहन होता है। इसी वरुणकलशके जलसे बादमें अभिषेक किया जाता है। पुण्याहवाचनमें ब्राह्मणोंद्वारा स्वस्ति, पुण्य, कल्याण आदिसे सम्बद्ध मन्त्रोंका पाठ होता है, ब्राह्मण मन्त्रपाठके साथ आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पुण्याहवाचनकी एक संक्षिप्त बौधायनीय पद्धति भी है, सुविधाके लिये उसे भी दिया गया है। गौरी, पद्मा आदि षोडशमातृकाके साथ सप्तघृतमातृकापूजन किया जाता है। रक्षाविधानमें पोटलिका अथवा रक्षासूत्रकी प्रतिष्ठा की जाती है, आयुष्यमन्त्रोंका पाठ होता है। इसी रक्षासूत्रको कर्मके अन्तमें हाथमें बाँधा जाता है- ‘कर्मान्ते दक्षिणहस्ते बध्नीयात्।’

सूर्यादि नवग्रहोंकी प्रीति, अरिष्ट-निवारण तथा शान्तिप्राप्तिके लिये मण्डल बनाकर अथवा विना मण्डलके ही कलशमें नवग्रहोंका आवाहनकर उनकी पूजा होती है, नवग्रहोंके साथ ही नौ अधिदेवता, नौ प्रत्यधिदेवता, पंचलोकपाल, दस दिक्पाल, वास्तोष्पति एवं क्षेत्रपाल – इस प्रकारसे चौवालीस देवोंका पूजन नवग्रहमण्डलमें होता है। अपने पितरोंकी प्रीति, तृप्ति तथा उनसे आशीर्वादकी कामनासे नान्दीमुखश्राद्ध होता है, इसे आभ्युदयिक या वृद्धिश्राद्ध भी कहते हैं। प्रत्येक मांगलिक कार्यमें इसका सम्पादन होता है। यह देवश्राद्ध है, अतः सभी कार्य सव्य होकर सम्पन्न होते हैं। उसी समय ब्राह्मणोंका वरण भी किया जाता है। कहीं-कहीं प्रारम्भमें ही ब्राह्मण-पूजन एवं वरणकी परम्परा है। ३. इस प्रकार पंचांग-पूजनकर्मके पाँच प्रधान कर्मोंके अन्तर्गत मुख्य रूपसे १. कलशस्थापन, २. पुण्याहवाचन, रक्षाविधान (आयुष्यमन्त्रपाठ), ४. नवग्रहपूजन तथा ५. नान्दीमुखश्राद्ध – ये पाँच कर्म समाहित हैं। इन सभी कर्मोंको यथाविधि सम्पादित करनेकी सम्पूर्ण विधि इस ‘पंचांग पूजन-पद्धति’ नामक पुस्तकमें दी गयी है। मन्त्रभाग संस्कृतमें है और निर्देश हिन्दीमें हैं। वैदिक मन्त्रोंके साथ-साथ पौराणिक मन्त्र भी दिये गये हैं। पुस्तकमें परिशिष्टके अन्तर्गत सुविधाकी दृष्टिसे कुशकण्डिकासहित होमविधि इत्यादि महत्त्वपूर्ण बातोंका भी समावेश किया गया है।

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