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Narad Mahapuran (नारद महापुराण)

127.00

Author Shri Ram Ji Sharma
Publisher Shri Durga Pustak Bhandar Pvt. Ltd.
Language Hindi
Edition -
ISBN -
Pages 224
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SDPB0050
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Description

नारद महापुराण (Narad Mahapuran) भगवान् श्री ब्रह्माजी के चार मानस पुत्र थे- सनक, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार – वे सभी एक समय ब्रह्मसभा को जा रहे थे। वे सभी रास्ते में गंगा में स्नान के लिए रुक गये। संयोग वश उसी समय वहाँ श्रीनारदजी भी आ पहुँचे। वे चारों ज्येष्ठ – भ्राताओं को प्रणाम – पूर्वक पाँच प्रश्नों के उत्तर देने के लिए निवेदन करते है। जो निम्न प्रकार है – 1. भगवान् श्रीविष्णु का स्वरूप क्या है? तथा भगवान् की भक्ति कैसे प्राप्त किया जा सकता है? 2. मनुष्य के नित्य नैमित्तिककर्म कैसे सफल हो सकते है? 3. भगवत् – भक्ति का स्वरूप क्या है और भक्तों के लक्षण क्या है ? 4. अतिथि – सेवा का क्या विद्यान है? 5. ज्ञान तथा तप का क्या स्वरूप है? उक्त पाँचों प्रश्नों के उत्तर सनकजी द्वारा नारदजी को दिए गए हैं। यहाँ से आरम्भ होता है, नारद पुराण।

नारद पुराण एक परम पवित्र, सुखद पुराण है और इसमें प्रवृत्ति-निवृत्ति का सारतत्त्व सुगुम्फित है। धरती पर नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों द्वारा पूछे जाने पर श्रीसूतजी द्वारा कहा गया है यह पुराण। नारद पुराण पापनाश, दुःस्वप्न निवारक, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और भक्ति प्रदायक है। यह नारद पुराण परम पवित्र गोपनीय वैष्णव – धर्म – प्रधान है, यह दो खण्डों में विभाजित है – पहला खण्ड तथा दूसरा खण्ड। पहले खण्ड में सनकादिकों द्वारा नारदजी के प्रश्नों के उत्तर एवं मार्कण्डेय जी की कथा का वर्णन है तथा तीर्थगंगा की महिमा और सूर्यवंशी राजा वृक का वृत्तान्त है। इसके पश्चात् कपिल मुनि ने साठ हजार सगर – पुत्रों को अभिशाप दे कर भस्म कर दिया था, उनके उद्धार के लिए अंशुमान द्वारा गंगावतरण की कथा है। फिर गुरु के स्वरूप के साथ-साथ ब्रह्मराक्षस द्वारा बारह प्रकार के गुरुओं की कथा है। इसके पश्चात् सनक मुनि द्वारा भगवान विष्णु से वामन रूप में राजा बलि के अहंकार दूर करने की कथा है। इस पुराण में अन्नदान, विद्यादान, पाँच प्रकार के श्राद्ध, विश्वासघात आदि दुष्कर्म से नरक – यातना भोगने आदि के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है।

दूसरे खण्ड में, धर्मानुष्ठान, तप, व्रत, दान आदि की विधि के बारे में बताया गया है। तपश्चात् में गोवध, चोरी, अनजाने में अनुचित यौन-संसर्ग के प्रायश्चित्तों का वर्णन भी है। फिर भगवत् स्मरण, ध्यान, कीर्तन, भजन – पूजन से लाभ के विषय में भी बड़े रोचक ढंग से कहा गया है। किस कर्म द्वारा कौन – सी मनुष्य-योनि मिलती है – इसका भी वर्णन है। अष्टांग – योग तथा वेदमाली ब्राह्मण की कथा का वर्णन है। विष्णुमंदिर निर्माण करने वाले राजा जयध्वज की भी कथा है। ब्रह्माजी के एक दिन में चौदह मनु, चौदह मनु में चौदह इन्द्र तथा चौदह प्रकार के देवता के होने की कथा का भी वर्णन किया गया है। सत्ययुग से लेकर कलियुग तक का वर्णन किया गया है। अन्त में चारों वेद और वेदांगों का वर्णन है। इस प्रकार ऐसे नारद पुराण के पठन-पाठन एवं श्रवण से मनुष्य – जीवन सफल हो जाता है। अंततः जैसे नदियों में गंगा, पुरियों में काशी, पर्वतों में मेरु देवों में नारायण श्रेष्ठ है…उसी प्रकार पुराणों में यह नारदपुराण सर्वश्रेष्ठ है। इसका पठन – श्रवण महान कल्याणकारी है।

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